Chaibasa:- गुरूद्वारा नानक दरबार चाईबासा में श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का 418 वां प्रकाश परब श्रद्धापूर्वक हर्षोल्लास के साथ मनाया गया. श्री गुरू सिंह सभा के अध्यक्ष गुरमुख सिंह खोखर ने समुह साध संगत को प्रकाश परब की लख लख बधाईयाँ दी.
अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि पंजाब के अमृतसर शहर में श्री गुरू अरजन देव जी ने 1604 ईस्वी में भाई रामदास जी का सहयोग लेते हुए श्री हरिमंदर साहिब के दरबार साहिब में श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का पहला प्रकाश किया गया था. उस दिन बाबा बुढा जी को श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का पहला ग्रंथी बनाया. बाबा बुढा जी ने श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के प्रकाश का पहला वाक जो लिया वो था संतां के कारज आप खलोया हर कम करावन आया राम. सिखों के दस गुरूओं के बाद श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी को ही गुरू माना जाता है.
आज्ञा भई अकाल की तभी चलायो पंथ, सब सिक्खं को हुक्म है गुरू मानयो ग्रंथ, गुरू ग्रंथ जी मानयो प्रगट गुरां की देह.
विश्व में जंहा सिख समाज के लोग गए वंहा उन्होंने अपनी एक अलग पहचान बनाई. अपनी नेक कमाई से वहाँ गुरूद्वारा साहिब का निर्माण करवा कर श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी का प्रकाश किया. परिणाम स्वरूप विदेशियों को श्री गुरु ग्रंथ साहिब की विचारधारा को भी समझने का अवसर मिल रहा है. इससे प्रभावित होकर कई लोग सिख धर्म अपना भी रहे हैं. सिखों के लंगर ने विश्व भर में अपनी एक पहचान बना ली है.
उन्होंने कहा कि अभी रूस और युक्रेन के युद्ध के वक्त भी कई जगह सिखों के लंगर के आयोजन हो रहे हैं. आम दिनों एवं धार्मिक आयोजनों के अलावा प्राकृतिक आपदाओं के समय भी सिख समाज लंगर तैयार कर जरूरतमंदो के बीच वितरित करता है. बेशक चाईबासा एवं इसके आसपास सिखों की आबादी काफी कम है फिर भी हम सब ने मिलकर अपने धार्मिक स्थल गुरूद्वारा नानक दरबार को एक वृहद आकार और सुन्दर रूप देने की कोशिश की है.
अभी इसके प्रथम तल के छ हजार वर्ग फुट फ्लोर पर स्टोन फिटिंग का कार्य चल रहा है. उम्मीद है इसी वर्ष के अंत तक सारा काम संपूर्ण होने पर विधिवत शुभ उदघाटन भी होगा.
शुक्रवार से आरम्भ किए गए श्री गुरू ग्रंथ साहिब जी के श्री अखंड पाठ की सम्पूर्णता रविवार अट्ठाइस अगस्त को हुई. इसके उपरांत छोटी बच्चियों एवं स्त्री सत्संग सभा द्वारा शब्द कीर्तन किया गया. ग्रन्थी प्रताप सिंह जी ने श्री गुरू ग्रंथ साहिब के बारे में विचार रखे.
अरदास के बाद प्रसाद एवं लंगर वरताया गया. जिसका आनंद सभी धर्मावलम्बियों ने लिया. इस गुरूपरब को सफल बनाने में जसपाल सिंह, बलजीत सिंह खोखर, दलविंदर सिंह, कृपाल सिंह एवं युवा खालसा के रौनक सिंह खोखर, सरजीत सिंह, हरप्रीत सिंह, जसप्रीत सिंह एवं स्त्री सत्संग सभा की सदस्यों का सराहनीय सहयोग रहा.