Chaibasa : लेखक और कलाकार आओ, अभिनेता और नाटककार आओ, हाथ से और दिमाग़ से काम करने वाले आओ और स्वंय को आज़ादी और सामाजिक न्याय की नयी दुनिया के निर्माण के लिये समर्पित कर दो. आज से 81 साल पहले 25 मई, 1943 को मुंबई के मारवाड़ी हाल में प्रो. हीरेन मुखर्जी ने इंडियन पीपुल्स थियेटर एसोशिएसन यानी इप्टा की स्थापना के अवसर पर, इस आयोजन की अध्यक्षता करते हुए.
जब संस्कृतिकर्मियों और कलाकारों से ये क्रांतिकारी आह्वान किया था. तब उन्होंने भी यह नहीं सोचा होगा कि इप्टा आगे चलकर देश में एक ऐसा सांस्कृतिक पुनर्जागरण करेगा. जिससे ना सिर्फ़ कला और संस्कृति में नए आयाम जुड़ेंगे. बल्कि ये सांस्कृतिक आंदोलन बड़े पैमाने पर अवाम को आजादी के लिए जागृत करेगा. ये वक्त का तकाजा था या फिर इप्टा का करिश्मा, देश की सभी ललित कलाओं, काव्य, नाटक, गीत, पारंपरिक नाट्यरूप आदि से जुड़े हुए हजारों लेखक, कलाकार, संस्कृतिकर्मी और बुद्धिजीवी इसकी ओर खींचे चले आए और कारवां बनता चला गया. यह वह दौर था. जब नाटक, गीत-संगीत, नृत्य, चित्रकला, लेखन, फिल्म से जुड़ा शायद ही कोई ऐसा शख्स होगा, जो इप्टा से न जुड़ा हुआ हो और जिसे इस संगठन ने अपनी ओर आकर्षित न किया हो.
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पृथ्वीराज कपूर, बलराज साहनी, दमयंती साहनी, चेतन आनंद, हबीब तनवीर, शंभु मित्रा,जोहरा सहगल, दीना पाठक जैसे आला दर्जे के कलाकार,अली सरदार ज़ाफ़री, डॉ. रशीद जहां, इस्मत चुगताई, ख्वाजा अहमद अब्बास जैसे उर्दू के नामचीन लेखक, रेखा जैन, सचिन शंकर, जैसे मुल्क के उम्दा नर्तक, पं. रविशंकर, सलिल चौधरी, जैसे शानदार संगीतकार, फ़ैज़ अहमद फ़ैज़, कैफी आजमी, साहिर लुधियानवी, शैलेंद्र जैसे इंकलाबी गीतकार, विनय राय, अण्णा भाऊ साठे, जैसे होनहार लोक गायक, फोटोग्राफर-सुनील जाना, निर्देशक-अनिल डि सिल्वा, भीष्म साहनी, ए.के. हंगल, एम एस सथ्यू, ऋत्विक घटक और चित्तो प्रसाद, सोमनाथ होर जैसे बेमिसाल चित्रकार इप्टा की शान बढ़ाते थे. उसमें चार चांद लगाते थे. उस दौर में इप्टा एक ऐसी संस्था बनी, जो सीधे तौर पर अवाम से जुड़ी और अवाम को भी अपने साथ जोड़ा. बंगाल का भीषण अकाल हो, या जापान का साम्राज्यवादी हमला या फिर आज़ादी की जद्दोजहद, इप्टा ने अपने जन गीतों और नाटकों को देशवासियों की आवाज़ बनाया. जन गीतों और नाटकों के जरिए समाज को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. इप्टा के गठन की पृष्ठभूमि में यदि जाएं, तो इसके पीछे देश में घटा एक बड़ा वाकया है.
साल 1943 में बंगाल में भीषण अकाल पड़ा.
इस अकाल में तकरीबन तीस लाख लोग भूख से मारे गए. वह तब, जब देश में अनाज की कोई कमी नहीं थी. गोदाम भरे पड़े हुए थे. लेकिन लोगों को अनाज नहीं मिल रहा था. एक तरफ लोग भूख से तड़प-तड़पकर मर रहे थे, दूसरी ओर अंग्रेज़ सरकार के कान पर जूं तक नहीं रेंग रही थी. ऐसे अमानवीय और संवेदनहीन हालात में बंगाल अकाल पीड़ितों के लिए राहत जुटाने के वास्ते खुद देशवासी आगे आए और उन्होंने ‘बंगाल कल्चरल स्कवॉड’ स्थापित किया. इस सांस्कृतिक दल ने बंगाल में घूम-घूमकर अपने नाटक ‘जबानबंदी’ और ‘नबान्न’ के जरिए अकाल पीड़ितों के लिए चंदा इकट्ठा किया.
बंगाल कल्चरल स्कवॉड’ के इन नाटकों की लोकप्रियता ने ही इप्टा के स्थापना की प्रेरणा दी.
इप्टा ने आज अपनी सांस्कृतिक यात्रा के 81 वर्ष पूरे कर लिए हैं. इसकी देश भर की शाखाएं अपने स्तर पर जन संस्कृति दिवस के रूप में मना रही हैं. इसी क्रम में इप्टा की चाईबासा शाखा का गठन 1 अगस्त 1985 को तत्कालीन अधिवक्ता तरुण मुहम्मद के द्वारा प्रोफेसर रतन लाल अग्रवाल और प्रोफेसर अरुण कुमार के सहयोग से हुआ. तब से लेकर आज तक इप्टा के प्रतिबद्ध संस्कृतिकर्मी अध्यक्ष कैसर परवेज, सचिव संजय चौधरी तथा अन्य सदस्यों ने समाज के ज्वलंत मुद्दों पर नुक्कड़ नाटक, जनगीतों के मध्यम से चाईबासा एवं पूरे झारखंड में जन जागरूकता फैलाने का काम किया है.
इप्टा के संस्कृति कर्मी शहीद पार्क चौक में संस्थापक तरुण मुहम्मद द्वारा झंडोत्तोलन किया गया. परवेज आलम एवं साथियों द्वारा जनगीत प्रस्तुत किए गए. कार्यक्रम में भाग लेने वाले सदस्यों में तरुण मुहम्मद, कैसर परवेज, परवेज आलम, शीतल सुगंधिनी बागे, राजू प्रजापति, विक्रम राम, श्यामल दस, किशोर साव, सीता पूर्ति, शिव शंकर राम तथा अन्य सदस्य उपस्थित रहे.
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