Chaibasa:- जेठ की शुरुआत व कड़ाके धुप के भीषण गर्मी के बीच उरांव समुदाय का ऐतिहासिक जतरा में विधि पूर्वक पूजा अर्चना पनभरवा (पुजारी) चमरू लकड़ा व दुर्गा कुजूर के द्वारा की गई. चाईबासा के सातों अखाड़ा में क्षेत्रीय कमिटि के दिशा निर्देश के अनुरूप नाच-गान धूम-धाम से किया गया.

जतरा त्योहार उरांव समुदाय का ऐतिहासिक त्योहार है. इस त्योहार को विजय का प्रतीक के रूप में मनाया जाता है, जब रोहतास गढ़ जो उरांव समुदाय का सुसम्पन्न साम्राज्य था उस समय के उरांवों के राजा उरूगन ठाकुर हुआ करते थे. राज्य की खुशहाली एवं सुसम्वन्नता को देखकर विदेशी आक्रमणकारियों द्वारा राज्य को अपने अधीन कब्जा करने की नियति से तीन बार आक्रमण किया गया. परन्तु तीनों ही बार उन आक्रमणकारियों को पराजय का सामना करना पड़ा. इन तीनों युद्ध में दुश्मनों को पराजित करने में महिलाओं का ही विशेष योगदान रहा l सभी महिलाएं लड़कों के वेष में युद्ध की थी. महिलाओं के द्वारा तीन बार विजय प्राप्त करने के बाद विजय का प्रतीक मानकर जीत के उपलक्ष्य में जतरा त्योहार मनाया जाने लगा. त्योहार में जिस ध्वज का उपयोग किया जाता है (जो नीले रंग की होती है) उस ध्वज के बीच में सफेद वृताकार के बीच तीन सफेद लकीर आज भी जीत के प्रतीक का चिन्ह मौजूद है. इस अवसर पर मुख्य रूप से समाज के मुखिया लालू कुजूर एवं समाज के सभी पदाधिकारी राजु तिग्गा,खुदिया कुजूर,शम्भु टोप्पो, राजेन्द्र कच्छप, विक्रम लकड़ा, सीताराम मुण्डा, जगरनाथ लकड़ा, कृष्णा तिग्गा, उमेश मिंज, संजय तिग्गा,विश्वनाथ कुजूर,पंकज खलखो, जगरनाथ टोप्पो, पिन्टु कच्छप, संजय कुजूर, करमा कुजूर, सुखदेव मिंज, बंधन मिंज, कृष्णा मुण्डा, नवीन कच्छप,राजेश कच्छप, बिगु लकड़ा, रामु टोप्पो, सुकरा बरहा, लखन टोप्पो,छिदु लकड़ा आदि उपस्थित थे.

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