सरायकेला: जिले के कांड्रा थाना क्षेत्र अंतर्गत  रतनपुर स्थित नीलांचल आयरन एंड पावर लिमिटेड द्वारा प्रदूषण फैलाए जाने और जिंदगी से खिलवाड़ किए जाने की समस्या को प्रमुखता से दिखाए जाने का नतीजा रहा है कि अब स्थानीय जनप्रतिनिधि और लोग आंदोलन कर जल जंगल जमीन और जीवन बचाएंगे.
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नीलांचल आयरन एंड पावर लिमिटेड द्वारा फैलाये जा रहे प्रदूषण के विरुद्ध लोगों में आक्रोश बढ़ रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधि और लोग मान रहे हैं जिस प्रकार कंपनी से निकलने वाला धुआं पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है उससे लोगों के शरीर में धीरे-धीरे जहर घुल रहा है। लोगों का कहना है कि पहले तो कंपनी का प्रदूषण काला डस्ट केवल खेत ,खलिहान घर ,आंगन तक सीमित था। लेकिन लगातार बढ़ रहे प्रदूषण की मार अब मानव शरीर में भी प्रवेश कर रही है। जो धीरे-धीरे शरीर में जहर घोलने का काम कर रही है। पहले ही हमने बताया था कि ग्रामीण बताते हैं कि प्रदूषण के चलते लोगों की इम्युनिटी पावर कमजोर है। लिहाजा कंपनी से सटे गांव के बुजुर्ग अक्सर बीमार रह रहे हैं।
 
त्वचा रोग जैसे गंभीर बीमारी से जूझ रहे ग्रामीण, करेंगे अनशन
प्रदूषण की मार झेल रहे कंपनी से सटे बुरुडीह पंचायत के 2 गांव करणगिरीगुड़ा और रायमारा के साथ रापचा पंचायत भी प्रदूषण की चपेट में है। रापचा पंचायत की मुखिया सुखमति मार्डी नीलांचल कंपनी के प्रदूषण के विरुद्ध पंचायत के लोगों के साथ आंदोलन की तैयारी में जुट गई है। उन्होंने बताया कि कंपनी द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण के चलते घर ,आंगन, खेत खलिहान के साथ गांव के तालाब लगातार प्रदूषित हो रहे हैं. गांव के तालाब में काले डस्ट की मोटी परत जमी रहती है. जिससे जल प्रदूषण भी हो रहा है. सुखमति मार्डी बताती हैं कि पशु -पक्षी इस दूषित जल को पीते हैं जिससे वह भी बीमार पड़ रहे हैं. इन्होंने बताया कि कंपनी के खिलाफ जन- जागरण अभियान चलाया जा रहा है.जिसमे  हस्ताक्षर अभियान की शुरुआत की जा चुकी है। उन्होंने बताया कि कंपनी कारनामे के विरोध आंदोलन तेज किया जाएगा ।जरूरत पड़ने पर प्रदूषण से प्रभावित आदिवासी -मूलवासी आमरण अनशन तक करेंगे। उन्होंने बताया कि प्रशासन और प्रदूषण विभाग कंपनी के कारनामे के विरुद्ध मुक दर्शक बनकर बैठी है। प्रदूषण विभाग और प्रशासनिक उदासीनता के चलते लोग कीड़े मकोड़े की तरह रहने को विवश हैं।
हरी घास काली हो रही ,मवेशी -किसान पर संकट
निलांचल कंपनी के प्रदूषण की मार इतनी है कि आसपास के इन गांव के हरे -भरे खेत खलिहान काले रंग में तब्दील हो रहे हैं. हरी घास काली हो गई जबकि मवेशियों को खेतों का हरा चारा तक नसीब नहीं हो पा रहा. पिंडराबेड़ा के रहने वाले ग्रामीण पवन चंद्र हांसदा ने बताया कि प्रदूषण के चलते किसानों के फसल प्रभावित हो रहे हैं। फसल वृद्धि के समय प्रदूषण और काले डस्ट के चलते फसलो की वृद्धि नहीं हो पा रही। इतना ही नहीं मवेशी ,बैल, बकरियों के हरे चारे पर भी प्रदूषण ने डेरा जमा लिया है. बढ़ते प्रदूषण के विरुद्ध उन्होंने बताया कि आसपास सभी गांव और पंचायत के ग्रामीण गोलबंद हो रहे हैं. जिला प्रशासन से लेकर राज्य सरकार के समक्ष कंपनी के विरुद्ध आवाज उठाया जा रहा है ताकि कंपनी जिंदगी से खिलवाड़ बंद करें।
प्रदूषण फैलाने पर हो सकती है 5 साल की सजा या 1 करोड का जुर्माना
प्रदूषण के मामले पर कानून जानकारों ने बताया है कि वायु प्रदूषण की समस्या पर काबू पाने के प्रयासों के तहत केंद्र ने अध्यादेश के जरिए नया कानून लेकर आया है। अध्यादेश में कहा गया कि प्रावधानों का उल्लंघन करने पर पांच साल तक जेल की सजा या एक करोड़ रुपये का जुर्माना या एक साथ दोनों सजा हो सकती है। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी)पास वायु (प्रदूषण रोकथाम और नियंत्रण) कानून 1981, और पर्यावरण (संरक्षण) कानून 1986 जैसे मौजूदा कानूनों के तहत निवारण के लिए मामलों का स्वत: संज्ञान लेने, शिकायतों पर सुनवाई, आदेश जारी करने का अधिकार हैं । आयोग के पास वायु प्रदूषण के लिए जिम्मेदार किसी भी गतिविधियों पर पाबंदी लगाने का अधिकार हैं।
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