Chaibasa:-  नेशनल एससी-एसटी हब, एमएसएमई मंत्रालय, भारत सरकार, रांची कार्यालय के द्वारा ट्राईबल इंडियन चेंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के सहयोग से आत्मा भवन, चाईबासा ब्लाक के बगल में उद्यमिता जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया. जिसमें काफी संख्या में एससी एसटी उद्यमीगण शामिल हुए.

 

कार्यक्रम में मुख्य रूप से नेशनल एससी-एसटी हब के अधिकारी प्रिंस राहुल के अलावा टिक्की के प्रदेश अध्यक्ष वैद्यनाथ माडी एवं राष्ट्रीय महासचिव बसंत तिर्की के अलावा टिक्की चाईबासा चैप्टर के अध्यक्ष छोटेलाल तामसोए एवं प्रभारी अनिल हेंब्रम उपस्थित थे. नए उद्यमियों को नेशनल एससी-एसटी हब की योजनाओं की जानकारी उपलब्ध कराई गई. वही, भारत सरकार के द्वारा पॉलिसीज में नए-नए हो रहे बदलाव के बारे में भी जानकारी उपलब्ध कराएं.

टिक्की के प्रदेश अध्यक्ष बैद्यनाथ मार्डी में अपने संबोधन में कहा कि पश्चिमी सिंहभूम में उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में अपार संभावनाएं हैं. राज्य सरकार एवं केंद्र सरकार के विभिन्न योजनाओं के बावजूद, केंद्र सरकार हो या राज्य सरकार कोई भी एससी-एसटी उधमिता पर गंभीर नहीं है सभी चीजें कागजों पर चल रही है. उनके नीतियां काम नहीं कर रही है. राज्य सरकार भी छोटे-छोटे वादों को पूरा कर आदिवासी समाज को खुश रखने का काम कर रही है. परंतु उद्यमिता संबंधित वादे जिससे आदिवासी समाज का कायाकल्प हो सकता है वैसे चीजों को लागू करने से कतरा रही है. उन्होंने बताया कि मुख्यमंत्री द्वारा घोषित 25 करोड़ का टेंडर स्थानीय को और आदिवासियों को उद्योग लगाने हेतु औद्योगिक क्षेत्रों में जमीन मूल्य का 50 छूट की घोषणा कागजों पर है. धरातल पर कोई काम नहीं हुआ है. उन्होंने बताया कि झारखंड, तकरीबन 30% जंगलों से घिरा है. ऐसे में वन उत्पाद और लकड़ी संबंधित व्यापार को उद्योग का दर्जा देने के साथ-साथ टिंबर लाइसेंस जारी करने की प्रक्रिया को सरल बनाया जाना चाहिए. जंगल की रक्षा आदिवासी समुदाय करता है और उसका व्यापार कोई अन्य करता है. कास्ठ व्यापार में भी आदिवासी समुदाय को प्राथमिकता दी जानी चाहिए.

वहीं, उन्होंने निजी कंपनियों को भी आड़े हाथों लेते हुए कहा कि रुंगटा समेत बड़ी निजी कंपनियां भी भाषा और संस्कृति के नाम पर आदिवासी समुदाय को उद्योग-व्यापार से दूर रखने का काम कर रही है. मांडी ने कहा कि निजी क्षेत्रों में 75 परसेंट का आरक्षण स्वागत योग्य है परंतु निजी कंपनियों में ठेकेदारी एवं आपूर्ति कार्यों में भी स्थानीय के लिए 75% आरक्षित किया जाना चाहिए, इनमें से 20% एससी – एसटी के लिए आरक्षित किया जाना चाहिए. उन्होंने बताया कि हमारे लोग पंजाब-हरियाणा जाकर मजदूरी कर रहे हैं और बाहर के लोग यहां आकर व्यापार धंधा कर रहे हैं.

रुंगटा ग्रुप को भी स्थानीय आदिवासियों को व्यापार-धंधों से जोड़ना चाहिए. वहीं, केंद्र सरकार में भी एमएसएमई की परिभाषा को बदलने से, पूर्व की पॉलिसी निष्क्रिय हो गई है. उसे भी बदलने की जरूरत है एवं माइक्रो के लिए अलग से नीति बनानी चाहिए. उन्होंने कहा कि टाटा स्टील को छोड़कर रुंगटा ग्रुप समेत अन्य बड़ी कंपनियां आदिवासी विकास को कागजों पर प्रदर्शित कर रही है. उनको व्यापार-धंधों से जोड़ने में परहेज कर रही है.

कार्यक्रम में मुख्य रूप से रामचंद्र बास्केसुनीता बानरा, रोशनी बिरुली, सुमित्रा देवगम, सुषमा बोदरा, झूमा गागराई, साधु हो, मनीष आल्डा, निर्मल सिंकू अनमोल पिंगुआ, राजेश कश्यप, रिमिल पारेया, दिकू हेम्ब्रम, कुंदन बिरुली, गोरख पूर्ति, मनोज सरदार, मनजीत उरांव, विकास मुखी उपस्थित रहे .

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