Adityapur: अंतरराष्ट्रीय श्रीनाथ हिंदी महोत्सव के दूसरे दिन के चिंतन मनन का विषय था ‘भारत का बहुभाषिक समाज, संस्कृति और हिंदी साहित्य’ वक्ता के रूप में डॉ. अल्पना मिश्रा, आचार्य, हिंदी विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय तथा दूसरे वक्ता के रूप में डॉ. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी, कृतकार्य आचार्य, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी उपस्थित थे।
सत्र का आरंभ डॉ. संध्या सिन्हा, डॉ. वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी से अपने पहले प्रश्न के द्वारा किया और पूछा की आपका इस बारे मे क्या  कहना है कि बहुभाषिकता सकती है या सीमा  इसका जवाब देते हुए डॉ वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी ने कहा कि हिंदी का भक्ति कालीन साहित्य में सूर ,जायसी ,तुलसी जैसे कवियों  का नाम उल्लेखनीय रूप से लिया जा सकता है और उस समय ब्रज अवधि जो बोलियां थी यह केवल बोलियां नहीं थी बल्कि यह एक परिनिष्ठित भाषा  थी।  विश्व में जहां कई देशों ने अपना अस्तित्व खो दिया वहां आज यदि विश्व में हमारे निशान बचे हैं तो इसका एक बहुत बड़ा कारण है हमारी सांस्कृतिक एकता. डॉ. अल्पना मिश्रा ने कहा कि भारत में 1,000 से अधिक भाषाएं बोली जा रही हैं । कुछ तो विलुप्त हो रही है. अतः हमारी चुनौती है कि इसे कैसे बचाया जाए? साथ ही उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि भाषा केवल संप्रेषण का साधन मात्र नहीं है ।
द्वितीय दिवस पर आयोजित होने वाली प्रतियोगिताओं में उल्टा पुल्टा, शब्द सरिता, कोलाज कला, कहानी से कविता तक, भाषा रूपांतरण,विज्ञापन रचना,प्रश्नोत्तरी अंतिम चरण आयोजित किये गए.
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