Kharsawan: खरसावां गोलीकांड के शहीदों के बेदी पर संकल्प लेने की जरूरत है कि आदिवासी समाज पीछे ना छूटे यह बातें केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने खरसावां शहीद दिवस के मौके पर शहीद बेदी पर श्रद्धांजलि देते हुए कही
1 जनवरी 1948 खरसावां गोलीकांड में शहीद हुए लोगों को श्रद्धांजलि देने केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा पूर्व घोषित कार्यक्रम के तहत शहीद स्थल पर यात्रा करते पहुंचे. केंद्रीय मंत्री ने शहीद बेदी पर माल्यार्पण के बाद पत्रकारों से बातचीत के क्रम में कहा कि प्रतिवर्ष शहीद दिवस के उपलक्ष पर लोग शहीदों को श्रद्धांजलि देने यहां पहुंचते हैं .बलिदान देख दुख तो होता है लेकिन आज शहीदों के प्रति जो सच्ची श्रद्धांजलि देने जनसैलाब उमड़ता है उसे देख तसल्ली मिलती है. अर्जुन मुंडा ने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में रोजगार, स्वास्थ्य ,संवैधानिक अधिकार के प्रति जागरूक होकर आज आदिवासी समाज आगे बड़े तभी खरसावां के पावन धरती पर शहीदों को सच्ची श्रद्धांजलि हम दे सकेंगे. श्री मुंडा ने कहा कि डिजिटल युग में नए क्षितिज का निर्माण हो रहा. जिसमें आदिम जनजाति का भी विकास हो रहा है.
शहीदों के प्रति राज्य सरकार दिखाएं संवेदनशीलता
74 साल बीतने के बाद भी खरसावां गोलीकांड शहीदों के चिन्हित नहीं होने और के मुद्दे पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा ने प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि राज्य सरकार को इस मुद्दे पर संवेदनशीलता दिखानी चाहिए. उन्होंने कहा कि सरकार में रहते हुए जो कमेटी बनाई उसमें भी घपले- घोटाले की बातें सामने आई. जिससे पता चलता है कि सरकार इन मामलों में गंभीर नहीं है. इस मौके पर केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा के साथ पत्नी मीरा मुंडा, जेबी तुबिद ,पूर्व विधायक लक्ष्मण टुडू, मंगल सिंह सोय, गणेश महाली, रमेश हांसदा, उदय सिंह देव ,राकेश सिंह समेत बड़ी संख्या में भाजपा कार्यकर्ता मौजूद थे।
आजाद भारत का सबसे बड़ा गोलीकांड था खरसावां गोलीकांड

1947 में आजादी के बाद पूरा देश राज्यों के पुनर्गठन के दौर से गुजर रहा था. तभी अनौपचारिक तौर पर 14-15 दिसंबर को ही खरसावां व सरायकेला रियासतों का विलय ओडिशा राज्य में कर दिया गया था. औपचारिक तौर पर एक जनवरी को कार्यभार हस्तांतरण करने की तिथि मुकर्रर हुई थी. इस दौरान एक जनवरी, 1948 को आदिवासी नेता जयपाल सिंह मुंडा ने खरसावां व सरायकेला को ओडिशा में विलय करने के विरोध में खरसावां हाट मैदान में एक विशाल जनसभा का आह्वान किया था. विभिन्न क्षेत्रों से जनसभा में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे थे. एक जनवरी 1948 का दिन गुरुवार और साप्ताहिक बाजार-हाट का दिन था, इस कारण भीड़ काफी अधिक थी. लेकिन, किसी कारणवश जनसभा में जयपाल सिंह मुंडा नहीं पहुंच सके. रैली के मद्देनजर पर्याप्त संख्या में पुलिस बल भी तैनात थी. इसी दौरान पुलिस व जनसभा में पहुंचे लोगों में किसी बात को लेकर संघर्ष हो गया. तभी अचानक फायरिंग शुरू हो गई और पुलिस की गोलियों से सैकड़ों की संख्या में लोग शहीद हो गए.

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