Ranchi (रांची) Chhath Kharna 2025 : छठ महापर्व का दूसरा दिन खरना के नाम से जाना जाता है। रविवार, 26 अक्टूबर 2025 को पूरे प्रदेश में यह पावन पर्व श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जा रहा है। इस दिन व्रती पूरे दिन निर्जल उपवास रखते हैं और सूर्यास्त के बाद प्रसाद ग्रहण कर अगले 36 घंटे के कठिन निर्जला व्रत की शुरुआत करते हैं। खरना को छठ महापर्व का सबसे महत्वपूर्ण और आध्यात्मिक दिन माना जाता है।

खरना का महत्व
‘खरना’ का अर्थ है – पापों का क्षय और आत्मा की शुद्धि। इस दिन व्रती मन, शरीर और आत्मा को शुद्ध कर सूर्यदेव और छठी मैया की आराधना करते हैं। माना जाता है कि यह व्रत साधक को संयम, संतुलन और भक्ति के मार्ग पर अग्रसर करता है और सूर्यदेव की महिमा से जोड़ता है।
तिथि और पूजा का समय
खरना तिथि : रविवार, 26 अक्टूबर 2025
पंचमी तिथि समाप्त : 27 अक्टूबर सुबह 6:04 बजे तक
पूजा का समय : सूर्यास्त के बाद (शाम 5:30 बजे से 6:00 बजे तक)
इस वर्ष खरना के दिन चार शुभ योग बन रहे हैं — सर्वार्थ सिद्धि योग, रवि योग, शोभन योग और नवपंचम राजयोग। इन योगों से पर्व का धार्मिक और ज्योतिषीय महत्व और बढ़ गया है।
खरना पूजा विधि और प्रसाद
व्रती सूर्योदय से पहले स्नान कर घर-आंगन की लिपाई-पुताई करते हैं।
पूजा स्थल पर सूर्यदेव और छठी मैया की प्रतिमा या चित्र स्थापित किए जाते हैं।
पूरा दिन बिना अन्न-जल ग्रहण किए उपवास रखा जाता है।
सूर्यास्त के बाद मिट्टी, पीतल या कांसे के बर्तनों में प्रसाद बनाया जाता है।
मुख्य प्रसाद होता है गुड़-चावल की खीर (रसियाव) और सोहारी (पूरी)।
इसके साथ केला, बताशा, मूली, पान-सुपारी और अन्य फल अर्पित किए जाते हैं।
प्रसाद केवल शुद्ध बर्तनों में बनाया जाता है और केले के पत्ते पर अर्पित किया जाता है।
प्रसाद का आध्यात्मिक महत्व
रसियाव (गुड़ की खीर): मिठास, संतोष और भक्ति का प्रतीक।
सोहारी: तपस्या, साधना और त्याग का संकेत।
फल-फूल व बताशा: सात्विकता और प्रकृति के संतुलन का प्रतीक।
यह प्रसाद केवल भोजन नहीं, बल्कि श्रद्धा और आस्था का प्रतीक माना जाता है।
सावधानियां
रसोई और पूजा स्थल को पूरी तरह साफ-सुथरा रखें।
प्रसाद केवल मिट्टी या धातु के बर्तनों में ही बनाएं।
अशुद्ध वस्तु या व्यक्ति को रसोई में प्रवेश न दें।
पूजा के समय मन को शांत और संयमित रखें।
शराब, मांसाहार और किसी भी प्रकार की अशुद्ध वस्तु से दूर रहें।

