Chaibasa : – झारखंड मुक्ति मोर्चा पश्चिमी सिंहभूम के जिला सचिव सोनाराम देवगम के द्वारा दिए गए बयान की कोल्हान आदिवासी एकता मंच ने कड़ी निंदा की है. मंच ने सोनाराम पर सवाल खड़े करते हुए उनसे पूछा है कि पहले खुद बताए कि सोनाराम देवगम किस जाति समुदाय से आते हैं? आदिवासी समाज को संदेह है कि आप (सोनाराम) आदिवासी नहीं हैं. उक्त बातें कोल्हान आदिवासी एकता मंच के सचिव सह प्रेस प्रवक्ता बीर सिंह बिरूली ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर कही.
उन्होंने कहा कि कोल्हान आदिवासी बहुल क्षेत्र होते हुए भी आप (सोनाराम) कुड़मियो की साथ दे रहे हैं. जहां कुड़मियो का कोई अस्तित्व नहीं है. झारखंड सरकार के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन, मंत्री चंपई सोरेन और कोल्हान के विधायकों का बचाओ करते हुए ओछी राजनीतिक बयानबाजी कर रहे हैं. संविधान के अनुच्छेद 342 का हवाला देते हुए आप (सोनाराम) कह रहे हैं कि यह मामला राष्ट्रपति और केन्द्र सरकार का है. इसमें राज्य सरकार के मुख्यमंत्री, मंत्री और विधायक कहां दोषी हैं. सोनाराम बताए कि वर्ष 2018 में ऐसी कौन सी मजबूरी थी या किसका दबाव था कि तत्कालीन मुख्यमंत्री रघुवर दास से मिलकर कुड़मियों को आदिवासी (अनुसूचित जनजाति) में शामिल करने हेतु हेमंत सोरेन के नेतृत्व में सांसद और विधायकों के हस्ताक्षर सहित जेएमएम ने ज्ञापन/आवेदन सौंपा था. आप (सोनाराम)
के अनुसार किसी जाति, धर्म और भाषा को शामिल करना या उस पर कानून बनाना केंद्र का काम है तो क्यों सरना धर्म कोड के लिए हेमंत सरकार ने कैबिनेट में प्रस्ताव पारित कर केन्द्र सरकार को अनुशंसा करना पड़ा? धर्म कोड का मामला सेंसस अनुच्छेद 1948 से जुड़ा है जिसमे राज्य सरकार की कोई भूमिका नहीं होती है.
कुड़मी-महतो भाई भाई का नारा भी जेएमएम ने ही झारखंड में बुलंद किया. वर्ष 1989 के अधिवेशन में केंद्रीय अध्यक्ष दिशूम गुरु शिबू सोरेन और महासचिव शैलेंद्र महतो के अगुवाई में पार्टी ने प्रस्ताव लाया कि कुड़मियों को आदिवासी बनाया जाए. 4 फरवरी 2018 को धनबाद के गोल्फ मैदान में जनसभा कर गुरुजी शिबू सोरेन द्वारा मंच से घोषणा किया जाता है कि कुड़मी को आदिवासी बनाना, जो कि दुर्भाग्यपूर्ण है. किसी भी कीमत में जेएमएम को आदिवासियों का कब्र खोदने नहीं दिया जाएगा. कोल्हान आदिवासी एकता मंच अपने धर्म संस्कृति, हसा, भाषा और आरक्षण में अतिक्रमण कतई बर्दाश्त करेगा इसके लिए संघर्षरत है और रहेगा. मंच ने सभी आदिवासी विधायकों/जनप्रतिनिधियों से अग्रह किया है कि अभी समय है गलती को सुधार लिया जाए. मंच ने कहा आर्टी-पार्टी बाद में, पहले माटी के बारे में सोचें. अन्यथा आने वाले समय में आदिवासी अपने माटी को बचाने के लिए किसी भी हद तक जा सकते हैं.