Chaibasa :- कोल्हान हो समुदायों (अनुसूचित जनजाति/आदिवासी) का मूल जन्म एंव निवास स्थान है. इस समुदाय की अपनी विशेष भाषा, लिपि, संस्कृति, धार्मिक व्यवस्था, सामाजिक एवं आर्थिक व्यवस्था है. भू अभिलेखों के अनुसार “हो समुदाय” अपने गांव के खूंटकट्टी रैयत है. उक्त बातें ईचा खरकई बांध विरोधी संघ कोल्हान अध्यक्ष ने प्रेस कांफ्रेंस आयोजित कर जानकारी देते हुए कही.
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उन्होंने कहा कि भूमि पर सामुदायिक स्वामित्व है. इस प्रशासनिक व्यवस्था को ब्रिटिश काल में विलकिंसन रुल एरिया एक्ट 1874 एंव भारतीय शासन अधिनियम 1935 की धारा 91 एंव 92 के तहत संरक्षण प्रदान किया गया था. आजादी के बाद संविधान के बाद अनुच्छेद 244(1) पांचवी अनुसूची के तहत हो समुदायों के प्रशासनिक व्यवस्था एंव उनके अस्तित्वयुक्त अधिकारों, मौलिक अधिकारों, रुढ़ी या प्रथा विधि को संरक्षित रखा गया है. आदिवासी क्षेत्रों में शांति और समुदाय तथा कल्याण एंव उन्नति हेतु विनियम बनने का अधिकार संवैधानिक संस्था जनजातीय सलाहकार परिषद को है. राज्य विधान मंडल का कोई अधिनियम या मंत्रिपरिषद को नही है. अनुसूचित क्षेत्रों में राज्य विधान मंडल का कोई अधिनियम या राज्य सरकार का कोई भू अर्जन से संबंधित परियोजना बिना जनजातीय सलाहकार परिषद के अनुमति के लागू नहीं होते हैं. 1973 को तत्कालीन कांग्रेस की राज्य सरकार ने जनजातीय सलाहकार परिषद से एंव 126 गांव के ग्राम सभाओं (हातु दुनुब)से बिना सहमति लिए स्वर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना (ईचा खरकई बांध) निर्माण हेतु सहमति प्रदान किया. इस परियोजना के निर्माण हेतु वित्तीय सहायता वर्ल्ड बैंक से 129 करोड़ प्राप्त किया. ईचा खरकई बांध से विस्थापित होने वाले 126 गांव के लोगों के हक अधिकारो की रक्षा के लिए राष्ट्रपति पदक से अलंकृत शाहिद गंगाराम कालुंडिया ने विरोध किया था.
तत्कालीन कांग्रेस की राज्य सरकार ने इस आंदोलन को पुलिस प्रशासन के दंडात्मक कार्रवाई के द्वारा रोका गया. शाहिद गंगाराम कालुंडिया की हत्या कर दी गई. 30 सितंबर 1988 को विस्थापितों के पुनर्वास उनके मौलिक अधिकारों से आदिवासियों को बेदखल होते देख सहायता राशि देना बंद कर दिया. वर्ल्ड बैंक ने 31 मार्च 1989 तक यह जानना चाहा कि पुनर्वास के मामले में क्या कारवाई हो रही है. परंतु राज्य सरकार ने कोई स्पष्ट जवाब नही दिया. जिसके कारण बांध निर्माण बंद हो गया. राज्य सरकार ने अंग्रेजों के लिए बनाए गए लोकतंत्र विरुद्ध कानून भारतीय भू अर्जन अधीनियम 1894 से लेने का प्रयास किया जो संविधान के अनुच्छेद 13(1) के विरुद्ध है.
उन्होंने कहा कि 2000 में झारखंड अलग राज्य बना, 2009 के झारखंड विधान सभा के चुनाव में भाजपा एंव झामुमो की गठबंधन की सरकार बनी. प्रथम पेज में मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा बने एवं उपमुख्यमंत्री हेमंत सोरेन बने और कल्याण विभाग झारखंड सरकार अधिसूचना संख्या 1358, 8 जून 2010 को झारखंड जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन किया गया. 13 जुलाई 2013 से 23 दिसंबर 2014 तक मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन रहे. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन पदेन अध्यक्ष और आदिवासी कल्याण मंत्री चंपाई सोरेन जनजातीय सलाहकार परिषद के उपाध्यक्ष थे. ईचा खरकई बांध परियोजना से होने वाले प्रभावों को जानने के लिए 27 सितंबर 2014 को टी.ए.सी उपसमिति का गठन किया गया. जिसके अध्यक्ष तत्कालीन कल्याण मंत्री चंपाई सोरेन, सदस्य तत्कालीन विधायक दीपक बिरुवा, तत्कालीन विधायिका गीता कोड़ा एवं जल संसाधन मंत्रालय, झारखंड सरकार के सचिव एंव प्रशासक ईचा खरकई परियोजना इसके सदस्य बने. यह समिति दिनांक 11 अक्टूबर 2014 को स्थल का अध्ययन हेतु भ्रमण किया. सर्वप्रथम समिति सदर विधान सभा, तुईबिर पंचायत अंतर्गत ग्राम सोसोहातु पहुंची. जहां 20 हजार प्रभावित ग्रामीणों ने समिति को बांध निर्माण पर आपत्ति जताई. इसके उपरांत समिति सरायकेला विधान सभा अंतर्गत कुजू पंचायत के ग्राम निमडीह पहुंची वहां भी ग्रामीणों ने बांध रद्द करने हेतु अनुरोध किया. मझगांव विधानसभा अंतर्गत तांतनगर प्रखंड के तांतनगर हाट पहुंची. वहां पहले से 50 हजार ग्रामीण उपस्थित थे. जहां ग्रामीणों ने बांध का पुरजोर विरोध करते हुए समिति के समक्ष आपत्ति जताई. समिति द्वारा स्थल पर हो रहे आंदोलनों की समीक्षा की साथ ही कोल्हान या अनुसूचित क्षेत्रों की संवैधानिक प्रावधानों का भी अध्ययन किया गया.
तत्पश्चात आदिवासी कल्याण मंत्री सह टी.ए.सी उपाध्यक्ष एवं उपसमिति के अध्यक्ष चंपाई सोरेन की अध्यक्षता में गठित अनुसूचित जनजातीय सलाहकार परिषद की उपसमिति 16 अक्टूबर 2014बिल निर्णय (अनुशंसा) करती है कि (1) जनजातीय क्षेत्रों में प्रचलित नियमों, अधिनियमों की अनदेखी कर बन रही ईचा खरकई बांध को अविलंब रद्द किया जाए. (2) परियोजना हेतु अनाधिकृत रुप से कृषि भूमि, धार्मिक स्थल, कब्रिस्तान, नदी इत्यादि से अपना आधिपत्य हटाया जाए साथ ही रैयतों को उनकी भूमि वापसी सुनिश्चित किया जाए. (3) उक्त परियोजना हेतु स्वीकृत राशि का खर्च प्रभावित 124 ग्रामों को उनके उत्थान के लिए खर्च किया जाए. (4) 124 ग्रामों के जनजातियों के हितों की रक्षा के लिए शहादत देने शाहिद गंगाराम कालुंडिया के परिवार के आश्रितों को सम्मान एंव नौकरी दी जाए.
इस अनुशंसा पर 16 अक्टूबर 2014 को उपसमिति के अध्यक्ष सह कल्याण मंत्री चंपाई सोरेन, विधायक सह सदस्य दीपक बिरुवा एवं विधायक सह सदस्य गीता कोड़ा अपना हस्ताक्षर कियो थी. झारखंड जनजातीय सलाहकार परिषद द्वारा गठित उपसमिति के इस निर्णय को हेमंत सोरेन की तत्कालीन सरकार को ईचा खरकई बांध परियोजना को रद्द करने हेतु आदेश देना था. परंतु उन्होंने आदेश नहीं दिया. 2019 ने विधान सभा चुनाव के पूर्व बदलाव यात्रा कर सत्ता पर बैठने के लिए ईचा खरकई बांध परियोजना को पुन: चुनावी मुद्दा बनाया तथा सरकार बनने पर रद्द करने का घोषणा किया. जबकि 2013 से 2014 तक हेमंत सोरेन मुख्यमंत्री थे एवं उपसमिति रद्द करने का अनुशंसा 16 अक्टूबर 2014 को कर चुकी थी. 2019 के विधान सभा चुनाव में झामुमो, झामुमो, राजद और माले के महागठबंधन की सरकार बनती है. हेमंत सोरेन जी पुन: मुख्यमंत्री बनते है. कल्याण विभाग झारखंड सरकार की अधिसूचना संख्या 05/टी.ए.सी/ 02/2021, 22 जून 2021 को झारखंड जनजातीय सलाहकार परिषद का गठन किया जाता है. मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन टी.ए.सी के पदेन अध्यक्ष बनते है. कल्याण मंत्री चंपाई सोरेन पदेन उपाध्यक्ष बनते है और अन्य सदस्य के रूप में विधायक दीपक बिरुवा, दशरथ गगराई, सुखराम उरांव, बंधु तिर्की, सोनाराम सिंकु, सीता सोरेन इत्यादि रहते हैं.
आदिवासी विधायक संविधान से हैं कितने अनभिज्ञ
इन आदिवासी विधायकों के होते हुए भी डैम रद्द करने का निर्णय के आलोक में रद्द करने का आदेश जारी नही करना यह दर्शाता है कि वर्तमान आदिवासी विधायक संविधान से कितने अनभिज्ञ है. ईचा खरकई बांध को सत्ता तक पहुंचने का माध्यम बनाने के लिए रद्द नही कर रहे हैं. 1978 में ईचा डैम का परियोजना राशि 129 करोड़ था. यही राशि वर्ष 2014 में बढ़कर 698 करोड़, 738 करोड़ तथा 970 करोड़ और वर्तमान में 6000 करोड़ खर्च होने की बात सामने आ रही है. जबकि 12 मार्च 2020 से बांध का निर्माण स्थागित है. 2023 को इंटक कांग्रेस के राष्ट्रीय सचिव संतोष कुमार सोनी झारखंड उच्च न्यायालय में जनहित याचिका दायर कर कोर्ट के माध्यम से पूछा था कि ईचा डैम क्यों बंद है, सरकार से सवाल करते हुए जवाब मांगते है. 6000 करोड़ खर्च होने का हवाला देते हैं. इस राजनीतिक कूटनीति घटनाक्रमों को देखते हुए अनुसूचित क्षेत्र के 87 ग्रामों के रैयत, आदिवासी, मूलवासी अक्रोशित हैं. ईचा खरकई बांध विरोधी संघ, कोल्हान ग्रामीणों, रैयतों, आदिवासियों और मूलनिवासियों के संवैधानिक एंव मौलिक अधिकारों की सुरक्षा के लिए संघर्षरत है. लोकतांत्रिक तरीके से जन आंदोलन और कानूनी लड़ाई लड़कर उन्हें न्याय देने के लिए प्रयासरत है.
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