Special Report | Press Freedom in Jharkhand
Ranchi (रांची) : लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहलाने वाला मीडिया आज खुद असुरक्षा के साए में खड़ा है। झारखंड में बीते कुछ वर्षों के दौरान पत्रकारों पर हुए हमले, दर्ज मुकदमे और प्रशासनिक दबाव यह संकेत दे रहे हैं कि सच लिखना अब जोखिम भरा होता जा रहा है। यह संकट केवल पत्रकारों तक सीमित नहीं है, बल्कि सीधे तौर पर जनता के सूचना के अधिकार और लोकतंत्र की जड़ों को प्रभावित कर रहा है।
नेशनल प्रेस डे पर विशेष : स्वतंत्र और जिम्मेदार पत्रकारिता को समर्पित दिन
लगातार हमले, बढ़ते मुकदमे
राज्य के विभिन्न जिलों से ऐसी घटनाएं सामने आती रही हैं, जहां भ्रष्टाचार, अवैध खनन, बालू और शराब माफिया, भूमि घोटाले और प्रशासनिक अनियमितताओं पर रिपोर्टिंग करने वाले पत्रकारों पर हमले हुए या उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई।
कई मामलों में पत्रकारों को थानों में तलब किया गया, मोबाइल और दस्तावेज जब्त किए गए, जिससे डर का माहौल पैदा हुआ। सबसे अधिक खतरे में ग्रामीण और जिला स्तर के पत्रकार हैं, जिनके पास न तो कानूनी सुरक्षा है और न ही बड़े मीडिया संस्थानों का संरक्षण।
कानून का डर और ‘साइलेंट सेंसरशिप’
चिंता का विषय यह है कि पत्रकारों के खिलाफ
आईटी एक्ट, मानहानि कानून, SC/ST एक्ट और अब BNS जैसी धाराओं का इस्तेमाल हो रहा है।
कानून का यह प्रयोग कई बार न्याय के बजाय डर पैदा करने का माध्यम बन जाता है। एफआईआर दर्ज होते ही पत्रकार आर्थिक, मानसिक और सामाजिक दबाव में आ जाता है, और यही स्थिति साइलेंट सेंसरशिप को जन्म देती है।
संविधान बनाम जमीनी हकीकत
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की गारंटी देता है। सुप्रीम कोर्ट भी प्रेस की स्वतंत्रता को लोकतंत्र की आत्मा मानता है।
लेकिन जमीनी स्तर पर हालात इसके उलट दिखते हैं। झारखंड में कई पत्रकार स्वीकार करते हैं कि वे अब खबर लिखने से पहले सौ बार सोचने को मजबूर हैं।
क्या सरकार की नीति नाकाफी है?
राज्य में पत्रकार सुरक्षा कानून की मांग लंबे समय से उठ रही है, लेकिन अब तक कोई ठोस और प्रभावी तंत्र लागू नहीं हो पाया है।
हमलों के बाद अक्सर बयानबाज़ी होती है, पर जांच और सजा की प्रक्रिया धीमी पड़ जाती है, जिससे हमलावरों के हौसले बढ़ते हैं।
मीडिया की जिम्मेदारी भी जरूरी
यह भी सच है कि पत्रकारिता के एक हिस्से ने पक्षपात और गैर-जिम्मेदार रिपोर्टिंग से पेशे की विश्वसनीयता को नुकसान पहुंचाया है।
लेकिन गलत पत्रकारिता की आड़ में स्वतंत्र पत्रकारिता को दबाना लोकतंत्र के लिए घातक है।
आगे का रास्ता
विशेषज्ञों का मानना है कि झारखंड में तत्काल पत्रकार सुरक्षा कानून लागू किया जाए, झूठे मुकदमों की फास्ट-ट्रैक जांच हो, जिला स्तर पर मीडिया प्रोटेक्शन सेल बने और पुलिस-प्रशासन को प्रेस स्वतंत्रता पर संवेदनशील बनाया जाए।
निष्कर्ष
यदि पत्रकार सुरक्षित नहीं, तो लोकतंत्र भी सुरक्षित नहीं। आज झारखंड में कलम पर बढ़ता दबाव आने वाले समय के लिए गंभीर चेतावनी है।
सच की रक्षा करना केवल पत्रकारों की नहीं, पूरे समाज की जिम्मेदारी है।

