Ranchi (रांची) न्यूज़ डेस्क : हिंदू पंचांग के अनुसार, अश्विन मास की पूर्णिमा को शरद पूर्णिमा कहा जाता है। यह वर्ष की सबसे पावन और रहस्यमयी रात मानी जाती है। मान्यता है कि इस रात चंद्रमा अपनी सोलहों कलाओं के साथ उदित होता है और उसकी रश्मियों से अमृत वर्षा होती है। यही कारण है कि इस तिथि को कोजागरी पूर्णिमा और रास पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।
🌸 रासलीला की रात — जब श्रीकृष्ण ने राधा संग नाचा
धार्मिक कथाओं के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्रीकृष्ण ने वृंदावन में गोपियों और राधा के साथ दिव्य रासलीला की थी। यह लीला प्रेम, भक्ति और आत्मिक एकता का प्रतीक मानी जाती है।
कहते हैं, जब चंद्रमा की उजली रौशनी गोकुल पर फैली, तो उस वातावरण में केवल प्रेम, संगीत और माधुर्य था। कृष्ण ने हर गोपी के साथ एक साथ नृत्य किया, जिससे यह “महा रास” कहलाया — जहाँ आत्मा का मिलन परमात्मा से होता है।
💰 माँ लक्ष्मी का आगमन — जागरण से मिलती कृपा
शास्त्रों के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात माँ लक्ष्मी पृथ्वी पर भ्रमण करती हैं और उन घरों में प्रवेश करती हैं जहाँ लोग जागते हुए उनका ध्यान करते हैं।
इसी कारण इस दिन ‘कोजागरी व्रत’ रखा जाता है — जिसका अर्थ है “कौन जाग रहा है?”। जो व्यक्ति रातभर जागकर भजन-कीर्तन करता है, उसके घर में माँ लक्ष्मी की कृपा स्थायी होती है।
🍚 चांदनी में खीर रखने की परंपरा — अमृत का स्पर्श
इस पावन रात का सबसे विशेष अनुष्ठान है — खीर को चांदनी में रखना।
भक्त दूध, चावल और शक्कर से बनी खीर तैयार करते हैं और उसे खुले आकाश के नीचे रखते हैं ताकि चंद्रमा की ठंडी रश्मियाँ उसमें समा सकें।
मान्यता है कि उस रात चांद से अमृत बरसता है, और वह खीर उस अमृत का स्पर्श प्राप्त करती है।
अगले दिन प्रातःकाल यह खीर भोग और प्रसाद के रूप में ग्रहण की जाती है। कहा जाता है कि इससे आयु, स्वास्थ्य और समृद्धि मिलती है।
🌿 वैज्ञानिक और आयुर्वेदिक दृष्टिकोण
आयुर्वेद के अनुसार, शरद पूर्णिमा की रात की चांदनी शरीर के ताप और पित्त दोष को संतुलित करती है।
चांदनी में रखी खीर ठंडी, पौष्टिक और पाचन में लाभदायक मानी जाती है। यह मन को शांत करती है और नींद, तनाव व मानसिक थकान को दूर करने में सहायक होती है।
🔮 भक्ति और विज्ञान का संगम
शरद पूर्णिमा का संदेश केवल धार्मिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक और वैज्ञानिक दोनों है।
यह रात हमें सिखाती है कि जब मन शुद्ध, भाव भक्ति से भरे और वातावरण निर्मल हो — तब प्रकृति स्वयं अमृत बरसाती है।
श्रीकृष्ण की रासलीला प्रेम का प्रतीक है, और माँ लक्ष्मी का आगमन समृद्धि का संकेत।
चांदनी में रखी खीर इन दोनों का संगम है — भक्ति का स्वाद और प्रकृति की ऊर्जा।
✨ पूजा-विधि और सावधानियाँ
- शरद पूर्णिमा की रात घर को स्वच्छ रखें और दीप प्रज्वलित करें।
- चांदी या मिट्टी के पात्र में खीर बनाएं।
- जैसे ही चांद निकले, उसे खुले आकाश में रखें, ढकें नहीं।
- सुबह खीर को भोग लगाकर परिवार में बाँटें।
- रातभर जागरण करें और माँ लक्ष्मी का ध्यान करें।
📜 निष्कर्ष
शरद पूर्णिमा केवल एक पर्व नहीं, बल्कि आत्मा की जागृति की रात है।
इस रात का चाँद सिर्फ आकाश में नहीं चमकता, बल्कि भक्त के मन में भी उजाला भरता है।
जब श्रद्धा और प्रेम का संगम होता है — तभी अमृत बरसता है।