(Devendra Singh) Chaibasa:- 2 जनवरी 1838 को कोल विद्रोह के दो नायक बोड़ो हो’ और पांडुआ हो’ को सेरेंगसिया घाटी के पास फांसी दी गई थी. यहां उत्तरी कोल्हान के लोग सार्वजनिक फांसी को देखने के लिए इकट्ठे हुए थे. यह घटना 1 जनवरी 1838 को, पोटो हो’, नारा हो’ और बुड़ाई हो’ को जगन्नाथपुर के पास सार्वजनिक रूप से फांसी देने का बाद आतंक का महौल बनाने वास्ते अंजाम दिया गया था. इन्हीं को श्रदांजलि देने के लिए हम हो समाज के लोग आज सेरेंग्सिया घाटी शहीद स्थल पहुँचे हैं. उपरोक्त बातें मुकेश बिरुवा पूर्व महासचिव आदिवासी हो समाज महासभा ने कोल विद्रोह के नायकों को श्रदांजलि देने के बाद उपस्थित सभा में कही.
उन्होंने कहा कि अपने इतिहास को दस्तावेजों के आलोक में समझना नई पीढ़ी की चुनौती है. अन्यथा, गलत सूचनाओं के साथ दुनिया में हंसी के पात्र बनना पड़ेगा. अभी काफ़ी दस्तावेज हमलोगों के पास हैं और इन्हें अपने दस्तूरों के साथ मिलाएँ तो हमारा गौरवशाली इतिहास हमारा इंतज़ार कर रहा है.
गब्बर सिंह हेंबरोम, महासचिव आदिवासी हो समाज युवा महासभा ने लोगों से आग्रह करते हुए कहा की समाज को सही जानकारी देना भी हमारा दायित्व है. युवा महासभा कि ओर से पिछले दो सालों से हम 2 जनवरी को आकार सेरेंग्सिया शहीदों को श्रदांजलि देने आ रहे हैं. ताकि इस दिन को हो समाज भव्य तरीक़े से मनाए और अपने इतिहास पर गर्व करे. स्थानीय समिति से हमारा आग्रह है की इस पर गम्भीरता से चर्चा हो और आने वाले समय में 2 जनवरी को व्यापक कार्यक्रम फाँसी देने वाले जगहों पर हो. हम भी संगठनिक तौर पर आयोजन के लिए आगे आएँगे. हो समाज में दुल सुनुम (मृत्यु उपरांत अनुशठान) एक बार ही मनाया जाता है, और दूसरे तरीक़े से मानकर समाज को हमें दिग्भ्रमित नहीं करना चाहिए. सेरेंग्सिया शहीद स्मारक समिति के अध्यक्ष महेंद्र नाथ लागुरी ने समाज के सुझाओं को गम्भीरता से लेने का आश्वासन दिया और युवाओं को अपने समृद्द इतिहास के मद्देनज़र जागरूक करने की बात कही.
ज्ञात हो कोल विद्रोह युद्ध के बाद पोटो हो’ और उसके साथियों के बारे में जो लगभग 2000 की संख्या में थे, उनकी खोज चल रही थी. अंग्रेजों ने उत्तर दिशा में दलाल लोगों को स्काउट के रूप में लगाया. लेकिन ऐसा लगता है कि उनका सहयोग पूरी तरह दिल से नहीं था. एक मौके पर एक बड़ा हमला गलत हो गया. क्योंकि स्काउट ने सेना को गलत दिशा में ले गए थे. फिर भी 8 दिसंबर को, सेरेंगसिया में अपनी हार के तीन सप्ताह बाद, दलाल स्काउट्स ने जंगल में पोटो हो’ का पता लगाया. उसे आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर कर दिया, और उन्हें पकड़ लिया गया. विल्किन्सन 18 दिसंबर की शाम को जगन्नाथपुर में टिकेल के शिविर में पहुंचे. विल्किंसन के हाथी से गिरने के कारण, कोर्ट की सुनवाई स्थागित हुई, पर मुकदमा 25 दिसंबर को शुरू हुआ और 31 दिसंबर को समाप्त हुआ. पांच नेताओं को मौत की सजा सुनाई गई थी और 79 अन्य हो’ लोगों को कारावास की विभिन्न सजा दी गई थी.
श्रदांजलि देने वालों में मुख्य रूप से इपिल समड, बबलु सुंडी, प्रमिला बिरुवा, कमला सिंकु, हीरा मनी पड़ेया, पार्वती हेंबरोम, शेरसिंह बिरुवा, रोया राम लागुरी, राहुल पुरती, सत्येंद्र लागुरी, राजेश हेस्सा, मनोहर लागुरी, ओएवोन हेंबरोम, प्रकाश पुरती, उपेन्द्र सिंकु, सुमन्त ज्योति सिंकु, कोलंबस हंसदा आदि उपस्थित थे.