Chaibasa (चाईबासा) : पश्चिमी सिंहभूम जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग ने एक महत्वपूर्ण निर्णय में बीमा उत्पादों की भ्रामक बिक्री (Mis-selling) को “अनुचित व्यापार व्यवहार” करार देते हुए एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड को एक उपभोक्ता को 4 लाख की संपूर्ण राशि वापस करने और 50,000/- रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है।
यह फैसला उन लाखों उपभोक्ताओं के लिए एक नजीर (Precedent) है, जिन्हें बैंक शाखाओं के माध्यम से बचत योजनाओं के नाम पर बीमा पॉलिसियां बेच दी जाती हैं।
मामला : FD के भ्रम में बीमा पॉलिसी
लक्ष्मी पुर्ती, निवासी ग्राम तुईबाना, द्वारा दायर शिकायत (उपभोक्ता केस संख्या 26/2024) के अनुसार, वह अपनी माता जेमा कुई पुर्ती के साथ भारतीय स्टेट बैंक (SBI), चाईबासा शाखा में फिक्स्ड डिपॉजिट (FD) कराने गई थीं। बैंक कर्मियों ने उन्हें एसबीआई लाइफ के प्रतिनिधि के पास भेज दिया।

प्रतिनिधि ने उन्हें यह विश्वास दिलाया कि वे FD करा रहे हैं, जबकि वास्तविकता में 2,00,000/- रुपये की राशि “रिटायर स्मार्ट प्लस” नामक बीमा पॉलिसी में निवेश कर दी गई। जब शिकायतकर्ता को इस धोखाधड़ी का पता चला और उन्होंने राशि वापसी की मांग की, तो कंपनी ने सहयोग नहीं किया। इसके अतिरिक्त, कंपनी ने ऑटो-डेबिट के माध्यम से उनके खाते से पुनः 2,00,000/- रुपये की कटौती कर ली, जिससे उन्हें कुल 4,00,000/- रुपये का आर्थिक नुकसान और मानसिक पीड़ा झेलनी पड़ी।
आयोग की टिप्पणी: अनुबंध शून्य (Void ab initio)
आयोग ने अपने आदेश में स्पष्ट रूप से कहा कि बीमा कंपनी यह साबित करने में पूरी तरह असफल रही कि उसने उपभोक्ता को बीमा उत्पाद की प्रकृति, जोखिम और शर्तों के संबंध में पूर्ण व स्पष्ट जानकारी दी थी।
आयोग ने टिप्पणी की :
”बीमा उत्पाद को एफडी के रूप में प्रस्तुत करना स्पष्ट रूप से अनुचित व्यापार व्यवहार है। प्रारंभिक सहमति ही धोखे से प्राप्त की गई थी, जिसके कारण अनुबंध शुरू से ही शून्य (Void ab initio) माना जाता है।”
आयोग ने यह भी नोट किया कि बीमा कंपनी ई-साइन, ओटीपी सत्यापन या डिजिटल वेलकम कॉल से संबंधित कोई भी सहायक दस्तावेज़ या साक्ष्य प्रस्तुत नहीं कर पाई।
आदेश एवं राहत
आयोग ने शिकायत को स्वीकार करते हुए एसबीआई लाइफ इंश्योरेंस कंपनी को निम्नलिखित राहत प्रदान करने का आदेश दिया है:
- 4,00,000/- (चार लाख रुपये) की संपूर्ण निवेश राशि शिकायतकर्ता को 45 दिनों के भीतर वापस की जाए।
- मानसिक पीड़ा के लिए 40,000/- रुपये और वाद व्यय (Case Cost) के रूप में ₹10,000/- अतिरिक्त अदा किए जाएं।
यदि 45 दिनों की निर्धारित समय सीमा के भीतर भुगतान नहीं किया जाता है, तो कंपनी को संपूर्ण राशि पर 9% वार्षिक ब्याज भी देना होगा।
