Chaibasa :- 1932 ख़ातियान अथवा इसके पूर्व के ख़ातियान के आधार पर झारखंड का स्थानीय नीति स्वागत योग्य कदम है। लेकिन मुझे लगता है, इस नीति को लाने में हेमन्त सोरेन को खीज कर यह लाना पड़ा है। इस ड्राफ़्ट में 1963-64 के सर्वे का ज़िक्र नहीं है, वैसे में यहाँ कोल्हान में ड्राफ़्ट के हिसाब से 1913-14 के ख़ातियान के आधार पर स्थानीय नीति निर्धारित होगी। इसके अलावे सम्बंधित ग्राम सभा यानी मानकी और मुंडा को भी किसी के स्थानीय नीति दस्तावेज बनाने में ज़िम्मेदारी के लिए जगह बनाया गया है। जबकि इस ड्राफ़्ट को लाने से पहले हर ज़िले से रिपोर्ट ली गई थी, की अंतिम सर्वे कब हुआ था। दुर्भाग्यवश जल्दबाज़ी में कुछ बुनियाद सवाल के साथ स्थानीय नीति की घोषणा हुई। उक्त बातें आदिवासी हो समाज महासभा के पूर्व महासचिव मुकेश बिरूवा ने कही।
उन्होंने कहा कि विधानसभा में बिल आने से पहले विभिन्न सामाजिक संगठन एवं जन प्रतिनिधियों के साथ सार्थक चर्चा करके मुख्य मंत्री हेमन्त सोरेन से मिल कर कोल्हान की बात को भी बिल में समयोजित कराने का प्रयास किया जाएगा। इस बिल से आरक्षण संबंधित फ़ायदा लेने के लिए इसे संविधान की नवीं अनुसूची में शामिल कराना होगा, यानी केंद्र सरकार के पास फ़ाइल जाएगी।
उन्होंने कहा कि यदि हेमन्त सोरेन सरकार ने बात न सुनी तो केंद्र सरकार के पास भी यहाँ के आदिवासी अपनी बात रखने जाएँगे। 2002 के स्थानीय नीति बिल में अंतिम सर्वे सेटलमेंट को आधार बनाया गया था। जब 2013 में हेमन्त सोरेन मुख्यमंत्री बने तब भी उन्होंने अंतिम सर्वे सेटलमेंट के आधार पर नीति की बात कही थी। ये अलग बात है की भारत आज़ाद होने के बाद कोल्हान में सिर्फ़ सर्वे हुआ था और राँची क्षेत्र का रेविज़न सेटलमेंट हुआ। इस तरह से यदि स्थानीय नीति का आधार अंतिम सर्वे सेटलमेंट हो तो कोल्हान का 1963-64 के सर्वे सेटलमेंट भी वैध दस्तावेज हो जाएगा और कोल्हान के लोग भी अपने को ठगा हुआ महसूस नहीं करेंगे। अगले एक दो दिन में इस सम्बंध में व्यापक चर्चा के लिए बैठक आयोजित की जाएगी, ताकि स्थिति को ठीक से समझा जा सके।