Saraikela : झारखंड का एक अनोखा जिला है सरायकेला – खरसावां जहां जिला पुलिस प्रेस कॉन्फ्रेंस, मीडिया ब्रीफिंग में प्रोटोकॉल को दरकिनार कर महज मीडिया में वाहवाही लूटने एसपी के बजाय थानेदार या दरोगा ही पुलिस ब्रीफिंग करते हैं. जो कि नियम के विपरीत है .कायदे से जिले में हर छोटे-बड़े मामले के प्रेस ब्रीफिंग के लिए पुलिस अधीक्षक अधिकृत होते हैं. इसके बाद डीएसपी या अनुमंडल पुलिस पदाधिकारी को एसपी द्वारा अधिकृत कर प्रेस ब्रीफिंग करवाया जा सकता है. लेकिन सरायकेला जिला पुलिस शायद इन नियमों से कोई इत्तेफाक नहीं रखती. जिसकी बानगी हाल के दिनों में खूब देखने को मिली है.
देखें क्या कहते है मामले पर एसपी आनंद प्रकाश
शुक्रवार 23 दिसंबर को आदित्यपुर थाने में हत्याकांड मामले का एक खुलासा सरायकेला पुलिस अधीक्षक आनंद प्रकाश करते हैं. लेकिन कुछ दिन पूर्व 20 दिसंबर को दरभंगा ओपी क्षेत्र में लेवी मांगने के आरोप में एक पीएलएफआई के दो सदस्यों को गिरफ्तार करने के बाद मामले की प्रेस ब्रीफिंग सब इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी करते हैं. पूछे जाने पर पुलिस अधीक्षक बताते हैं कि छोटे मामलों की प्रेस ब्रीफिंग के लिए इंस्पेक्टर ,सब इंस्पेक्टर को अधिकृत किया जाता है. और बड़ों मामलों की ब्रीफिंग वे खुद यानी पुलिस अधीक्षक करते हैं. इससे साफ जाहिर होता है कि पीएलएफआई के सदस्यों के गिरफ्तारी के मामले को एसपी साहब छोटी घटना मानते हैं. जबकि हत्याकांड के आरोपीयो की गिरफ्तारी की ब्रीफिंग इनके लिए बड़ा मामला है. नियम को ताक पर रखकर जिले में लगातार विभिन्न थाना क्षेत्र में प्रेस वार्ता या मीडिया ब्रीफिंग आयोजित कर दी जाती है. जो प्रोटोकॉल के विरुद्ध है. इस मामले में कोल्हान के पूर्व डीआईजी राजीव रंजन सिंह बताते हैं कि हर मीडिया ब्रीफिंग के लिए एसपी या डीएसपी रैंक के अधिकारी अधिकृत हैं. अगर ऐसा नहीं होता है तो यह सरासर नियम की घोर अनदेखी है. ठीक इस बात से इत्तेफाक सरायकेला खरसावां जिले के पूर्व चर्चित एसपी रह चुके लक्ष्मण प्रसाद सिंह भी रखते हैं. लगातार 5 साल तक जिले में पुलिस कप्तान की भूमिका अदा करने वाले लक्ष्मण प्रसाद सिंह बताते हैं कि इनके वक्त केवल एसपी यानी खुद इनके द्वारा ब्रीफिंग किया जाता था. उपलब्धता नहीं होने पर डीएसपी को ही अधिकृत किया जाता था. लेकिन अगर अब थानेदार या सब इंस्पेक्टर रैंक के अधिकारी ब्रीफिंग कर रहे हैं तो यह नियम के तो विरुद्ध है।
आखिर प्रेस रिलीज को प्रमाणित करने में पुलिस क्यों करती है आनाकानी
मीडिया में बयानबाजी कुछ और कोर्ट में कुछ और और जमीनी हकीकत कुछ और, ये हाल है सरायकेला जिला पुलिस का। अपराधिक घटनाओं के अनुसंधान की हकीकत को दरकिनार कर पुलिस लिखती है बनावटी स्क्रिप्ट, आखिर पुलिसिया जांच सच से परे क्यो रहती है, क्या पुलिस अपनी अनुसंधान के माध्यम से मालदार अपराधियों को मदद करती है. आखिर मीडिया में बड़े बड़े दावे करनेवाली पुलिस के दावों की हवा क्यो कोर्ट में निकल जाती है। आदित्यपुर थाना में साबिर हत्याकांड को आयोजित प्रेस कनफ्रेस में पत्रकारों द्वारा अभिप्रमाणित प्रेस रिलीज मांगने के सवाल पर प्रेस कान्फ्रेस के दौरान उठकर एसपी चले गए, अब कानून के जानकर यह बताते है की अगर पुलिस प्रेस रिलीज को अभिप्रमाणित कर दिया तो फिर वह अनुसंधान में कोई और कहानी नहीं गढ़ पाएगी।
पीएलएफआई सदस्यों के गिरफ्तारी की ब्रीफ़िंग करते सब इंस्पेक्टर
पुलिस अधीक्षक से जब प्रेस ब्रीफिंग पत्र बगैर हस्ताक्षर के मिले जिसपर सवाल पुछे गये तो पुलिस अधीक्षक ने यह कह दिया कि हस्ताक्षर युक्त प्रेस रिलिज का कोई प्रावधान नहीं है. हालांकि कानूनविदों की माने तो पुलिस ऐसा इसलिए करती है कि कोई उस पत्र को डाक्यूमेंट्री प्रमाण ना बना लें.
बता दें कि सरायकेला खरसावां जिलें में कई अपराधिक घटनाओं में पुलिस की कमजोरी दिखी है. शानबाबू हत्याकांड में सभी आरोपी जमानत पर निकले उसके बाद पुन: वहीं आरोपियों ने ट्रीपल मर्डर जैसी वारदात को अंजाम दिया.