गम्हरिया: झारखंड में कुड़मी समाज को अनुसूचित जनजाति (एसटी) की सूची में शामिल करने की मांग के विरोध में आदिवासी संगठनों का आंदोलन तेज हो गया है। इसी क्रम में सोमवार को गम्हरिया प्रखंड मुख्यालय में आदिवासी समाज की ओर से भव्य “आदिवासी आक्रोश महारैली” का आयोजन किया गया।
यह रैली उषा मोड़ स्थित सरना उमूल से निकाली गई और गम्हरिया प्रखंड मुख्यालय तक पैदल मार्च किया गया। रैली में बड़ी संख्या में आदिवासी पुरुष और महिलाएं पारंपरिक वेशभूषा में शामिल हुए। उनके हाथों में तीर-धनुष, भाला, हंसिया और दावली जैसे पारंपरिक हथियार थे। पूरे मार्च के दौरान “एक तीर एक कमान, सभी आदिवासी एक समान” जैसे जोशीले नारे गूंजते रहे, जिससे माहौल पूरी तरह आंदोलित नजर आया।
रैली में वक्ताओं ने कहा कि अंग्रेजी शासनकाल में ही कुड़मी समाज ने स्वयं को आदिवासी समुदाय से अलग कर लिया था। स्वतंत्र भारत के संविधान निर्माता डॉ. भीमराव अंबेडकर ने अनुसूचित जनजातियों और जातियों के लिए विशेष प्रावधान बनाए ताकि उनके सामाजिक, सांस्कृतिक और संवैधानिक अधिकारों की रक्षा हो सके। नेताओं ने चेतावनी दी कि यदि कुड़मी समाज को एसटी सूची में शामिल करने की कोई भी कोशिश की गई तो आदिवासी समाज इसका कड़ा विरोध करेगा।
आदिवासी नेताओं का है कि कुड़मी समाज को एसटी में शामिल करने से न केवल आरक्षण व्यवस्था पर सीधा प्रभाव पड़ेगा बल्कि आदिवासियों के संवैधानिक अधिकारों पर भी आघात होगा। उन्होंने केंद्र और राज्य सरकार से मांग की कि इस मांग को तुरंत खारिज किया जाए और आदिवासी समुदाय के अधिकारों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
प्रदर्शन के अंत में आदिवासी संगठनों ने अंचलाधिकारी को महामहिम राष्ट्रपति के नाम एक मांग पत्र सौंपा, जिसमें कुड़मी समाज को एसटी सूची में शामिल न करने की स्पष्ट मांग की गई। यह रैली गम्हरिया क्षेत्र में आदिवासी एकजुटता और विरोध की एक बड़ी मिसाल बनकर उभरी।