राजनगर: झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री चम्पई सोरेन ने कहा कि झारखंड राज्य बने 25 साल हो चुके हैं, लेकिन आज भी यहां के आदिवासी समाज को उनका हक और सम्मान पूरी तरह नहीं मिला है। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज जल, जंगल और जमीन से जुड़ा हुआ है और यही उनकी असली पहचान रही है। आदिवासी मेहनतकश और स्वाभिमानी होते हैं, उनकी सामाजिक व्यवस्था हमेशा समृद्ध रही है।

चम्पई सोरेन बुधवार को राजनगर में आयोजित एक प्रेस वार्ता को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आदिवासी समाज की यह लड़ाई कोई नई नहीं है — यह लड़ाई बाबा तिलका माझी से शुरू होकर चूहाड़ विद्रोह, बिरसा मुंडा, सिद्धू-कान्हू और चांद-भैरव जैसे वीर सपूतों की शहादत से होती हुई आज तक जारी है। उनके संघर्षों से ही संथाल परगना बना और बाद में एसपीटी एक्ट जैसी सामाजिक सुरक्षा व्यवस्था अस्तित्व में आई।
पूर्व मुख्यमंत्री ने कहा कि आज झारखंड की डेमोग्राफी तेजी से बदल रही है। आदिवासियों की संख्या घट रही है, जबकि घुसपैठियों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अब तक लगभग 30 हजार एकड़ से अधिक जमीन आदिवासियों से हड़पी जा चुकी है। यह आदिवासी अस्तित्व और अधिकार पर गंभीर खतरे का संकेत है। उन्होंने कहा कि इसी सामाजिक और आर्थिक असंतुलन के कारण कोल विद्रोह जैसी घटनाएं हुईं।
चम्पई सोरेन ने कांग्रेस पर सीधा निशाना साधते हुए कहा कि देश की आजादी के बाद से ही कांग्रेस ने हमेशा आदिवासी समाज के साथ अन्याय किया है। उन्होंने झारखंड आंदोलन को अपमानित करने का आरोप लगाया और कहा कि कांग्रेस के शासनकाल में गुआ गोलीकांड और खरसावां गोलीकांड जैसी घटनाएं हुईं, जिसमें निर्दोष आदिवासी शहीद हुए।
उन्होंने याद दिलाया कि भगवान बिरसा मुंडा की जयंती दो दिन बाद मनाई जाएगी, लेकिन आज भी उन सभी शहीदों को न्याय नहीं मिला, जिन्होंने झारखंड राज्य के लिए अपने प्राणों की आहुति दी। चम्पई सोरेन ने कहा कि ईच डैम परियोजना का विरोध कर उसे रुकवाने का काम भी उन्होंने किया था, ताकि आदिवासी जमीनों का संरक्षण किया जा सके।
कार्यक्रम में सिद्धू-कान्हू के वंशज मंडल मुर्मू भी मौजूद थे। चम्पई सोरेन ने अंत में कहा कि अब समय आ गया है जब आदिवासी समाज को फिर एकजुट होकर अपने अधिकार, अस्तित्व और सम्मान की रक्षा करनी होगी — यही भगवान बिरसा मुंडा और सिद्धू-कान्हू की सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

