Chaibasa (चाईबासा) : कोल्हान प्रमंडल के विभिन्न जिलों में बिजली चोरी के नाम पर की जा रही छापेमारी और जुर्माने की वसूली से यह स्पष्ट हो गया है कि राज्य सरकार और बिजली विभाग की नीयत गरीब और आदिवासी जनता को प्रताड़ित करने की बन चुकी है.
उक्त बातें पूर्व सांसद गीता कोड़ा ने कहीं.
उन्होंने कहा कि हाल ही में 823 स्थानों पर छापेमारी कर 98 ग्रामीणों पर बिजली चोरी का मुकदमा दर्ज कर ₹15.64 लाख रुपये जुर्माना वसूला गया. जिसमें अकेले सरायकेला और चाईबासा जैसे सुदूर क्षेत्रों से सबसे ज्यादा गरीब ग्रामीणों को निशाना बनाया गया. यह कार्रवाई उस सरकार के समय हो रही है जिसने 200 यूनिट फ्री बिजली देने का वादा कर लोगों को झूठे सपने दिखाए थे.
जबकि वास्तविकता यह है कि ग्रामीण क्षेत्रों में घरेलू बिजली कनेक्शन लेने में ₹4000- शहरी क्षेत्र में ₹4500 का खर्च आता है. मीटर अलग से लेना पड़ता है.
सारंडा और अन्य वनों से घिरे क्षेत्रों में अधिकांश ग्रामीणों के पास आय का कोई स्थायी स्रोत नहीं है.
रोजगार योजनाएं कागज़ों में हैं, ज़मीनी स्तर पर कुछ नहीं.
बिजली जैसे जीवनोपयोगी संसाधन से वंचित ग्रामीण, जानकारी के अभाव और गरीबी के कारण मजबूरन ‘टोका’ लगाकर बिजली उपयोग करते हैं.
कई जगह बंद घरों में बिजली चालू रहने से बिल बढ़ जाता है, लेकिन विभाग जुर्माना लगाकर और कनेक्शन काटकर और ज्यादा संकट पैदा करता है.
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या राज्य सरकार यह मानकर चल रही है कि गरीब ग्रामीणों को बिजली का उपयोग करने का अधिकार नहीं?
पूर्व सांसद गीता कोड़ा ने झारखंड के हेमंत सोरेन सरकार से जनहित में मांग रखते हुए कहा कि
1. सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में मुफ्त बिजली कनेक्शन तत्काल उपलब्ध कराया जाए।
2. जिन पर बिजली चोरी का आरोप है, उनके खिलाफ दर्ज मुकदमे को मानवीय दृष्टिकोण से वापस लिया जाए।
3. 200 यूनिट मुफ्त बिजली योजना को जनजागरूकता अभियान के माध्यम से प्रभावी बनाया जाए।
4. सरकार ग्रामीणों को बिजली उपयोग के प्रति प्रशिक्षित करे, न कि दंडात्मक कार्रवाई करे।
5. जिनके पास बिजली नहीं है, उन्हें विभाग की ओर से कैम्प लगाकर तत्काल कनेक्शन दिया जाए।
राज्य सरकार यदि सच में आदिवासी और गरीबों की हितैषी है तो उसे सिर्फ घोषणाएं नहीं, ज़मीनी स्तर पर राहत पहुंचानी होगी।
अन्यथा हम आदिवासी समाज और ग्रामीण जनता के साथ मिलकर सरकार की इस जनविरोधी नीति के खिलाफ बड़ा आंदोलन खड़ा करेंगे।