Chaibasa (चाईबासा) : कोल्हान के अधिकत्तर हो आदिवासी बहुल गांवों में माघे पर्व की तैयारी शुरू हो गयी है. आमतौर पर फरवरी तथा मार्च महीने में सर्वाधिक गांवों माघे पर्व मनाया जाता है. इसके लिये तिथि ग्रामीण आपसी विचार विमर्श कर तय करते हैं. बहरहाल, गांवों में लोग अपने मिट्टी के घरों की लीपाई तथा रंगरोगन के कार्य में जुट गये हैं.
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साथ ही घर के छप्पर की मरम्मत व आंगन की लीपाई का काम भी चालू है. वहीं कई गांवों में सामाजिक सहभागिता निभाते हुए ग्रामीण पूजा स्थल देशाऊली की श्रमदान से साफ-सफाई करने में लग गये हैं. पारंपरिक खेलकूद मैदान तथा सामूहिक नृत्य अखाड़ों को दुरूस्त किया जा रहा है. माघे पर्व के तीसरे दिन हारमागेया पर्व के मौके पर वार्षिक खेलकूद भी आयोजित किये जाने की पुरानी परंपरा है. वहीं मादर व नगाड़ों की मरम्मत कराने की होड़ भी शुरू है.
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पहाड़ी की तलहटी में बसे गांवों में जंगल जाकर जलावन लकड़ी लाने की परंपरा का निर्वहन भी हो रहा है जिसमें महिला व पुरूष उत्साहपूर्वक भाग ले रहे हैं. माघे पर्व को नजदीक आते देख ग्रामीण हाट-बाजारों की खरीददारी में वृद्धि देखी जा रही है. विशेषकर कपड़े, हांडी, सूप, पत्तल, बर्तन, रानू समेत मांदर व नगाड़े आदि की मांग भी तेज हो गयी है. खस्सी, बत्तख तथा पूजा के काम आनेवाले देशी मुर्गे की मांग तो आसमान पर है. ज्ञात हो कि माघे पर्व आदिवासी हो समुदाय का सबसे बड़ा पर्व होता है. इसके नजदीक आते ही गांवों में त्योहार का उत्साह छा जाता है.
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चूंकि हो समुदाय प्रकृति पूजक होते हैं. इसलिये इस त्योहार में वे अपने इष्ट देवों यानी प्रकृति की शक्तियों की पूजा करते हैं और उसके प्रति आभार जताते हैं.
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