Chaibasa (चाईबासा) : उपभोक्ता आयोग चाईबासा ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया की लापरवाही के कारण ग्राहक को मानसिक, शारीरिक एवं आर्थिक उत्पीड़न के लिए 1 लाख रुपये मुआवजा एवं 50,000 रुपए मुकदमा खर्च देने का आदेश दिया है.
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वर्ष 2008 में शिकायतकर्ता ने सेंट्रल बैंक ऑफ इंडिया, चाईबासा शाखा से 5,00,000 रुपया का टर्म लोन एवं 4,00,000 रुपए का पूंजीगत ऋण आयुर्वेदिक दवा निर्माण इकाई स्थापित करने हेतु लिया था। यह ऋण ग्रामीण रोजगार सृजन कार्यक्रम (REGP) योजना के तहत था, जिसमें ग्राहक को कुल ऋण राशि का 25% सब्सिडी के रूप में मिलना था.
शिकायतकर्ता ने समय पर अपनी ईएमआई का भुगतान किया, लेकिन बैंक ने सब्सिडी के लिए कोई दावा नहीं किया और ग्राहक से लगातार ईएमआई वसूलता रहा. जब शिकायतकर्ता ने 2015 में बैंक से सब्सिडी के लिए पत्राचार किया, तब बैंक ने कोई ठोस जवाब नहीं दिया. 2016 में शिकायतकर्ता ने कानूनी नोटिस भी भेजा, लेकिन बैंक ने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी.
मामला उपभोक्ता आयोग में पहुंचा, जहां आयोग ने 05.12.2019 को बैंक को ऋण की शेष राशि की पुनर्गणना करने और 25% सब्सिडी राशि घटाने का आदेश दिया था. बैंक ने इस आदेश के विरुद्ध राज्य उपभोक्ता आयोग रांची में अपील की, जिसके बाद केस को पुनः सुनवाई के लिए जिला उपभोक्ता आयोग चाईबासा को भेजा गया.
सुनवाई के दौरान खादी ग्रामोद्योग आयोग (KVIC) को भी पक्षकार बनाया गया, जिन्होंने स्पष्ट किया कि सब्सिडी के लिए दावा केवल बैंक द्वारा निर्धारित समयावधि (तीन महीने) के भीतर किया जाना चाहिए था. बैंक ने यह दावा निर्धारित समय में नहीं किया, जिससे शिकायतकर्ता को सब्सिडी का लाभ नहीं मिल सका.
आयोग ने बैंक की लापरवाही को ग्राहक के वित्तीय नुकसान, मानसिक और शारीरिक उत्पीड़न का कारण मानते हुए 1,00,000 रुपये मुआवजा और 50,000 रुपये मुकदमा खर्च देने का आदेश दिया. बैंक को यह राशि 60 दिनों के भीतर 9% वार्षिक ब्याज दर सहित भुगतान करनी होगी, अन्यथा जबरन वसूली की कार्रवाई की जाएगी. इस आदेश के साथ मामला निष्पादित कर दिया गया.