Jadugoda : सीधे प्रधानमंत्री के नियंत्रण वाला सार्वजानिक क्षेत्र का भारत सरकार का अति महत्वपूर्ण संस्थान यूरेनियम कारपोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड जादूगोड़ा अब भ्रष्टाचार का अड्डा बनता जा रहा है. पहले ही इस संस्थान के सीएमडी धोखाधड़ी के मामले में अदालत के चक्कर लगा चुके हैं. वहीँ कम्पनी के कई वरीय अधिकारी भी विजिलेंस जांच के घेरे में हैं . अब यहाँ एक नए घोटाले का पता चला है. जिसमे यूसिल सम्पदा विभाग के अधिकारी और एक स्थानीय समिति मिलकर लगातार 6 वर्षों से टेंडर मैनेज करके लगातार कम्बल ओढ़कर घी पी रहे हैं. सबसे बड़ी बात ये है की कम्पनी के सीएमडी सहित सभी वरीय अधिकारियों की ठीक नाक के नीचे सारी खिचड़ी पकाई जा रही है और उन्हें इस बात की भनक तक नहीं है. वैसे ये बात हज़म करने वाली नहीं लगती . क्योंकि घोटाला बड़ा है और रकम करोड़ों में है. एक आर टी आई से इस बात का खुलासा हुआ है की कैसे नियमो को ताक पर रखकर सम्पदा विभाग के ( उप -अधीक्षक सिविल ) दिलीप कुमार मंडल एवं उप – महाप्रबंधक ( प्रबंधन सेवाएं ) प्रभास रंजन के संरक्षण में सारा खेल चल रहा था. क्योंकि सभी दस्तावेज सबसे पहले उन्ही के पास पहुँचते हैं फिर उनकी जांच करके उसे सही पाए जाने पर अनुमोदन के लिए बनी कम्पनी की कमिटी के पास भेजा जाता है. और अनुमोदन के बाद यही विभाग उन्हें कार्यादेश देती है. मगर जब इस सीमित निविदा की बात आयी जो दो वर्षों के लिए करीब 1.5 करोड़ की निकाली जाती है तो सम्पदा विभाग के अधिकारी सभी नियम-कानून भूल गए और मुखी समाज विकास समिति को उपकृत करने में लग गए.
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जानकारी के अनुसार वर्ष -2019 से यूसिल जादूगोड़ा में साफ़ -सफाई के लिए समितियों के नाम पर यूसिल सम्पदा विभाग के अधिकारीयों की मिलीभगत से सीमित निविदा निकाली गयी. निविदा निकालने से पहले सम्पदा विभाग के अधिकारीयों द्वारा प्रस्ताव तैयार किया जाता है. उसके बाद राशि स्वीकृत होने के लिए संचिका तकनीकी निदेशक के कार्यालय में जाती है वहां से स्वीकृति के बाद टेंडर प्रक्रिया शुरू होती है. जब ये प्रक्रिया शुरू हुई तब इस निविदा में भाग लेने से पहले सभी समितियों के निबंधन समेत अन्य पात्रता से सम्बंधित दस्तावेजों को कम्पनी के सम्पदा विभाग में जमा लिया गया था . जिसमे 1 . जिसमे मुखी समाज विकास समिति, 2. साईं महिला समिति, 3. ग्राम विकास समिति, 4. मुखी समाज कल्याण समिति, 5. द आदिवासी वेलफेयर सोसाइटी 6. मे० यू सी आई एल एन बी एस एस एस एस जादूगोड़ा कुल 6 समितियों ने अपने -अपने दस्तावेजो को कम्पनी के सम्पदा कार्यालय में जमा किया था. जिनकी जांच के बाद इन्हें कमिटी के पास अनुमोदन के लिए भेजा जाना था. यहाँ सभी दस्तावेजों की जांच दिलीप मंडल ने किया और उन्हें कमिटी के पास अनुमोदन के लिए भेजा गया और कमिटी से सभी को सीमित निविदा में भाग लेने के लिए अनुमोदन भी प्राप्त हो गया. बस यहीं से शुरू हुआ सारा खेल. जब इस सीमित निविदा में भाग ले रही एक समिति मे० यू सी आई एल एन बी एस एस एस एस जादूगोड़ा का कार्यादेश यह कहते हुए रद्द कर दिया गया की उनके पास सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत झारखण्ड सरकार द्वारा निर्गत निबंधन का प्रमाण -पत्र नहीं है. मगर ये एक आँख में काजल और एक आँख में सुरमा लगाने वाली बात हुई. क्योंकि मे० साईं महिला समिति जादूगोड़ा एवं ग्राम विकास समिति जादूगोड़ा के पास भी सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत झारखण्ड सरकार द्वारा निर्गत निबंधन का प्रमाण -पत्र नहीं है. मगर कमिटी के पास दस्तावेजों को अनुमोदन के लिए भेजने से पहले सम्बंधित अधिकारी दिलीप कुमार मंडल और अंतिम कार्यादेश पर हस्ताक्षर करने वाले उप – महाप्रबंधक ( प्रबंधन सेवाएं ) प्रभास रंजन इस मामले में आँख बंद करके बैठे रहे और बिना वैध दस्तावेजों के इन दोनों समितियों को लगातार सीमित निविदा में भाग लेने दिया जाता रहा. जो की नियमो के विरुद्ध कार्य था. क्योंकि कम्पनी द्वारा निकाली गयी निविदाओं EOI-JAD/EM-98, EOI -JAD/EM-117, NIT -JAD/EM-106, NIT -JAD/EM-107, NIT -JAD/EM-126, NIT -JAD/EM-128 में अन्य शर्तों के साथ -साथ कंडिका -02 में एक आवश्यक शर्त ये भी थी की इन निविदाओं में भाग लेने वाली समितियों को झारखण्ड सरकार के निबंधन विभाग से सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट -1860 की धारा XXI के तहत अपने निबंधन का प्रमाण-पत्र भी जमा देना ही था तभी वो इस सीमित टेंडर प्रक्रिया में भाग लेने के लिए पात्र समझे जाते . निबंधन प्रमाण -पत्र की कमी दिखाते हुए मे० यू सी आई एल एन बी एस एस एस एस जादूगोड़ा को कार्यादेश मिलने के बावजूद उसे रद्द करके इस टेंडर प्रक्रिया से जबरन बाहर किया गया . वहीँ निबंधन प्रमाण-पत्र नहीं होने के बाद भी ग्राम विकास समिति जादूगोड़ा और साई महिला समिति जैसी फर्जी समितियां लगातार 5 वर्षों तक इस मलाईदार टेंडर प्रक्रिया का हिस्सा बनकर मुखी समाज विकास समिति को टेंडर दिलवाने का जरिया बनती रही. मगर जब निजाम ही उल्टा है तो रोकने वाला कौन हो सकता था ? मुखी समाज विकास समिति जिसकी निबंधन संख्या – 129 तथा निबंधन का वर्ष – 2009 -2010 है तथा निबंधन विभाग के रिकार्ड के अनुसार पता टयूब कम्पनी गेट के सामने, बर्मामाइन्स, जमशेदपुर है, इन सभी डमी समितियों के सहारे यूसिल सम्पदा विभाग के अधिकारीयों की मिली भगत से लगातार एल -1 होती रही. और करोड़ों के टेंडर हासिल करती रही. क्योंकि दूसरी समितियों के टेंडर भी मुखी समाज विकास समिति के उपाध्यक्ष सुखो मुखी उर्फ़ टिकी मुखी स्वयं ऊँचे रेट पर डलवाते थे. ऐसे में दूसरी समितियों के एल -1 होने की कोई सम्भावना ही नहीं होती थी.
इस पूरे प्रकरण में सबसे मजेदार बात तो ये है की मात्र निबंधन प्रमाण – पत्र नहीं होने की बात ही नहीं है. आर टी आई में दिलीप कुमार मंडल एवं उप-महाप्रबंधक (प्रबंधन सेवाएं) प्रभास रंजन द्वारा उपलब्ध करवाई गयी सूचना के अनुसार ग्राम विकास समिति जादूगोड़ा का जी एस टी नंबर – AA200619004329F भी फर्जी है. अब बड़ा सवाल ये है की आखिर इतने बड़े मामले को देखने और दस्तावजो की जांच करने की जिम्मेदारी किसकी है. सम्पदा विभाग के अधिकारीयों की या अनुमोदन कमिटी की. जाहिर है की इसके लिए विभाग के उप-महाप्रबंधक ( प्रबंधन सेवाएं) प्रभास रंजन ही जिम्मेदार होते हैं. क्योंकि अंतिम कार्यादेश पर उन्हें ही हस्ताक्षर करना होता है. फिर साईं महिला समिति और ग्राम विकास समिति को कम्पनी के टेंडर दस्तावेज की कंडिका दो की सबसे अनिवार्य शर्त झारखण्ड सरकार का सोसाइटी निबंधन एक्ट के तहत निबंधन का प्रमाण पत्र प्रस्तुत करने वाली पात्रता पूर्ण नहीं करने के बावजूद उन्होंने क्यों नहीं रोका. ये एक महत्वपूर्ण सवाल है.
इस बाबत पूछने पर यूसिल सम्पदा विभाग के उपाधीक्षक दिलीप कुमार मंडल ने जो जवाब दिया वो भी काफी दिलचस्प है उन्होंने कहा की जो दस्तावेज हमारे पास जमा होते हैं उन्हें मैं कमिटी के पास भेज देता हूँ. अब कमिटी को ये तय करना है की वो क्या करे. मे० यू सी आई एल एन बी एस एस एस एस जादूगोड़ा का कार्यादेश और टेंडर में भाग लेने के लिए किये गए निबंधन को रद्द करने के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा की उसका सोसाइटी रजिस्ट्रेशन एक्ट के तहत निबंधन का प्रमाण -पत्र नहीं था इसलिए उसे बाहर किया गया. वंही जब उनसे साईं महिला समिति का निबंधन प्रमाण पत्र एवं ग्राम विकास समिति के जाली जी एस टी नंबर एवं निबंधन प्रमाण -पत्र के बारे में पुछा गया तो उन्होंने कहा की जिस समिति के बारे में शिकायत आती है, केवल उसी की वो जांच करते हैं. यानी यूसिल जैसी राष्ट्रीय स्तर की संस्था में जाली दस्तावेजों के आधार पर भी काम करना संभव है. क्योंकि जबतक उसकी शिकायत नहीं होगी तो जांच करने की फुर्सत किसे है.
वहीँ इस सम्बन्ध में पूछे जाने पर कम्पनी के उप-महाप्रबंधक ( कार्मिक / औ० सं० ) राकेश कुमार ने कहा की इस सम्बन्ध में कई शिकायतें प्राप्त हुई हैं. मामला काफी गंभीर है. इसलिए इन सभी मामलों की जांच कम्पनी के मुख्य सतर्कता अधिकारी को सौंप दी गयी है. शिकायतकर्ता का सत्यापन की प्रक्रिया पूरी कर ली गयी है और इसपर गहन जांच की जा रही है. दोषियों को बख्शा नहीं जायगा.
ये तो सिर्फ झांकी भर है. इस टेंडर के खेल में कई अधिकारीयों की भूमिका पर अभी रहस्य खुलना बाकी है.