Chaibasa:- भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की चाईबासा की ओर से स्थानीय स्कॉट बालिका उच्च विद्यालय के प्रांगण में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की 142 वीं जयंती धूमधाम से मनाई गई. कार्यक्रम का शुभारंभ महान साहित्यकार प्रेमचंद की तस्वीर पर माल्यार्पण कर किया गया. तत्पश्चात उपस्थित जनों द्वारा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की गई. अध्यक्ष कैसर परवेज के स्वागत के बाद डॉ. शशिलता ने मुंशी प्रेमचंद के व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डालते हुए उनके साहित्य की प्रसांगिकता को सामने रखा. कार्यक्रम में मुख्य रूप से चक्रधरपुर से आई रंगकर्मी खुशी वर्मा ने दिनकर शर्मा के निर्देन में क्रमशः प्रेमचंद की दो कहानियों ‘दो बैलों की कथा’ और ‘माता का हृदय’ को अभिनय की जीवंतता के साथ प्रस्तुत कर सभी को मंत्रमुग्ध कर दिया.
‘दो बैलों की कथा’ प्रेमचंद द्वारा लिखित रचना है. प्रेमचंद अपनी रचनाओं के माध्यम से संदेश देने में माहिर हैं. समाज को अपनी रचनाओं के माध्यम से कैसे जगाया जाए. यह उन्हें बहुत अच्छी तरह आता है. यह कहानी सांकेतिक भाषा में यह संदेश देती है कि मनुष्य हो या कोई भी प्राणी हो, स्वतंत्रता उसके लिए बहुत महत्व रखती है। स्वतंत्रता को पाने के लिए लड़ना भी पड़े, तो बिना हिचकिचाए लड़ना चाहिए। जन्म के साथ ही स्वतंत्रता सबका अधिकार है, उसे बनाए रखना सबका परम कर्तव्य है. दो बैलों की कथा में बैलों के माध्यम से लेखक अपने विचार समाज के समक्ष रखता है. इस कहानी में दो मित्र बैल अपनी स्वतंत्रता को बनाए रखने के लिए संघर्ष करते हैं. यह कहानी दो बैलों के बीच में घनिष्ठ भावात्मक संबंध को दर्शाती है. यह कहानी मनुष्य और जानवर के बीच में उत्पन्न परस्पर संबंध का सुंदर चित्र भी प्रस्तुत करती है.


‘माता का हृदय’ कहानी पूरी तरह से माता के संपूर्ण स्वरूप को प्रस्तुत करनज में सक्षम है. एक माता जिसका पति मर गया हो, उसके लिए उसका पुत्र ही जीवन का आधार है. किंतु माधवी के साहसी, परोपकारी पुत्र को जब झूठे मुकदमे में फँसा कर सजा हो जाती है तो, माधवी का का हृदय बदले की आग में जलने लगता है और अब उसके जीवन का आधार सिर्फ़ पुत्र का बदला लेना हो जाता है. बदाले की आग में जलती माधवी के बास जब बदला लेने का उचित अवसर होता है तो भी वह बदला लेना भूलकर मातृत्व में डूब जाती है. सार तत्व के रूप में कह सकते हैं कि, माता का हृदय कभी अनुचित नहीं कर सकता वह तो दया, प्रेम और ममता ही लुटा सकता है.

इसके बाद रंगकर्मी देवेन्द्र कुमार मिश्रा ने प्रेमचंद के जीवनवृत्त को सामने रखते हुए उनके साहित्य और कार्य क्षेत्र पर व्यापक व्याख्यान प्रस्तुत किया। शिक्षक अनंतलाल विश्वकर्मा ने प्रेमचंद के साहित्य को वर्तमान समय से जोड़कर प्रस्तुत किया. प्रोफेसर अंजना कनौजिया ने ‘प्रेमचंद और उनका पशुप्रेमी रूप’ विषय पर अपने मौलिक और सारगर्भित व्याख्यान दिया. शीतल सुगंधिनी बागे ने अपने संचालन से कार्यक्रम को अंत तक आकर्षक बनाए रखा. अंत में सचिव संजय चौधरी ने रंगकर्मी खुशी वर्मा को स्मृति-चिह्न देकर सम्मानित किया और धन्यवाद ज्ञापन किया. कार्यक्रम में अनुराग शर्मा, शीतल सुगंधनी बागे, शिवशंकर राम, श्यामल दास, अन्नु पूर्ती, परवेज आलम, किशोर साहू, तारा शर्मा आदि रंगकर्मी एवं शहर के गणमान्य लोग व विद्यार्थी उपस्थित रहे.

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