Chaibasa:- पश्चिमी सिंहभूम जिला स्थिति सेरेंगसिया घाटी में 19 नवंबर 1837 में अंग्रेजों से आदिवासी लड़ाकुओं ने लड़ाई जीती थी. इसी को लेकर सेरेंग्सिया घाटी विजय दिवस आयोजन समिति के तत्वावधान में आज विजय दिवस मनाया गया. 

 

सेरेंग्सिया घाटी विजय दिवस आयोजन समिति संरक्षक सह आदिवासी हो समाज महासभा के पूर्व महासचिव मुकेश बिरूवा ने बताया कि विजय दिवस मजानने से पूर्व दियुरीयों द्वारा घाटी स्थल, जहाँ 19 नवम्बर 1837 को अंग्रेजों को शिकस्त दी गई थी वंहा पर पोटो हो, नराह हो, बुड़ाई हो, पाण्डुवा हो और बोड़ाह हो को याद करते हुए, पूजा अनुष्ठान किया गया. उसके बाद चूँकि अंग्रेजों को तीर धनुष से मार कर भगाया गया. इसलिए उसी जगह पर वैसे ही स्थिति में पारंपरिक तीरंदाजी आयोजित किया गया.

उन्होंने बताया कि उसी तरह विभिन्न पारंपरिक पद्दतियों को प्रतियोगिता के रूप में संपन्न किया गया. हुनुरलंग एक प्रकार का पत्थर फेंकने वाला रस्सी है. इससे तोप की भाँति तीव्र गति से पत्थर फेंका जाता था. उसे भी बनाने की प्रतियोगिता रखी गई है. इन सब आयोजनों के पीछे मक़सद है की हमलोग सामाजिक और सांस्कृतिक परिवेश में इतिहास को जानें और समझें. तीर धनुष प्रतियोगिता में प्रथम रघुनाथ लागूरी, द्वितीय पुस्तम लगूरी, और तृतीय स्थान अर्जुन लागूरी ने प्राप्त किया. पारंपरिक रस्सी बनाने में प्रथम बुधन लागूरी, द्वितीय सोमबारी हेम्ब्रम और तृतीय स्थान चाँद मनी सिद्दू को मिला.

पारंपरिक झाड़ू बनाने में प्रथम एस फ्रेस गुमदीबुरु, द्वितीय सुयी लागूरी और तृतीय स्थान सुशीला लागूरी को मिला. लकड़ी को घर्षण कर (सेंगेल गुरतुई)आग निकालने में प्रथम स्थान पाली सिंकु, द्वितीय मोटाय लागूरी और तृतीय स्थान सोमा लागूरी को प्राप्त हुआ. धान का पूड़ा बांधने के लिए रस्सी बनाने में प्रथम सूबेदार लागूरी, द्वितीय जूरिया लागूरी, और तृतीय स्थान सूबेदार लागूरी को मिला. मुख्य अतिथि मुखिया लखन लागूरी और विशिष्ट अतिथि मुंडा बिमल लागूरी उपस्थित थे. मुकेश बिरुवा ने सेरेंग्सिया विजय दिवस की जानकारी दी और कहा कि इसे राष्ट्रीय स्तर पर याद करने की जरुरत है.


कार्यक्रम को सफल बनाने में सरदार लागूरी, सलूका लागूरी, लेबिया लागूरी, सनातन लागूरी, बामाचरण कुंकल, ओम प्रकाश लागूरी, सूबेदार लागूरी, देवचरण लागूरी, सुरसिंह लागूरी, भूषण लगूरी ने सराहनीय काम किया. कार्यक्रम की अध्यक्षता राम किशोर लागूरी ने किया.

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